कॉफी के शौकीन हैं तो ये विडियो आपके लिए है

कॉफी के शौकीन हैं तो ये विडियो आपके लिए है

भारतीय दक्षिण राज्यों के पहाड़ी इलाकों में कॉफी का उत्पादन किया जाता है। कर्नाटक राज्य में सबसे अधिक कॉफी का उत्पादन किया जाता है। भारतीय कॉफी को दुनिया भर में सबसे अच्छी गुणवत्ता वाली कॉफी माना जाता है। कॉफी के बारे में बता रहे हैं रोहित कुमार।

कॉफी की जानकारी के लिए हमने जायजा किया कर्नाटक के कुर्ग का जहां हर तरफ कॉफी के पेड़ देखने को मिलते हैं। यह जगह कॉफी के स्वाद की तरह ही बेहद शानदार है। हर जगह हरियाली न सिर्फ आंखों को सुकून देती है बल्कि कॉफी के फूलों से निकलने वाली सुगंध तरोताजा महसूस करा सकती है। द तामरा कुर्ग होटल में रुकने के बाद हमने जायजा लिया कॉफी की खेती का, जहां लाल कॉफी के फल सभी को आकर्षित करते हैं।

कॉफी का इतिहास
कॉफी का जन्मस्थान लाल सागर के दक्षिणी छोर पर स्थित यमन और इथियोपिया की पहाड़ियों को माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इथियोपिया के पठार में एक गडरिए ने जंगली कॉफी के पौधे से बने एक पेय पदार्थ की सबसे पहले चुस्की ली थी। शुरुआत में इसकी खेती यमन में होती थी और यमन के लोगों ने ही अरबी में इसका नाम कहवा रख दिया जिससे कॉफी और कैफे जैसे शब्द बने।

दो तरह की खेती
कॉफी इंस्टीट्यूट ऑफ अमेरिका से कॉफी टेस्ट में लाइसेंस्ड क्यू ग्रेडर पाने वाले कॉफी टेस्ट एक्सपर्ट सुशांत एचआर ने हमें बताया कि कॉफी की खेती मुख्यत: दो प्रकार में बांटी जाती है। एक अरेबिका और दूसरा रोबेस्टा है। वर्तमान समय में रोबेस्टा की खेती को सबसे ज्यादा किया जाता है क्योंकि इस पर कीड़े लगने की संभावना न के बराबर होती है। साथ ही भारत में कॉफी के स्वाद में  लगभग 50 प्रकार होते हैं। यह स्वाद प्रकृति से प्राप्त होते हैं।

भारत की कॉफी सबसे उम्दा
भारतीय कॉफी को सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि भारत में कॉफी की खेती छांव में की जाती है जबकि अन्य देशों में कॉफी की खेती खुली धूप में की जाती है जिससे कॉफी का फल जल्दी बड़ा हो जाता है मगर उनकी गुणवत्ता कम रहती है। वहीं जो भारत में छांव में खेती जाती है वह धीरे-धीरे बड़ी होती है लेकिन उसकी गुणवत्ता अच्छी होती है। इसलिए भारत की कॉफी को सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है।

भारत में ऐसे हुई शुरुआत
भारत में कॉफी का इतिहास एक संत बाबा बुदान से शुरू हुआ। बाबा बुदान कॉफी के बीज को अपनी कमर पर बांध कर भारत ले आए थे। इन्हें चंद्रगिरी की पहाड़ियों में उगाया गया जिसे अब चिक्कामगलुरु जिले में बाबा बुदान गिरी के नाम से जाना जाता है। यह नाम उन्हीं संत के नाम पर दिया गया है।

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