सुप्रीम कोर्ट में हुए ये सवाल-जवाब अलोक वर्मा की याचिका पर सिर्फ 18 मिनट में

सुप्रीम कोर्ट में हुए ये सवाल-जवाब अलोक वर्मा की याचिका पर सिर्फ 18 मिनट में

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पीठ ने राजनैतिक रूप से संवेदनशील सीबीआई के विवाद को शुक्रवार को बेहद तेजी से निपटाया और महज 18 मिनट में आदेश पारित कर दिया। अदालत ने छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के वकील फाली एस नारीमन की दलीलें चार मिनट में सुनीं, फिर 10 मिनट सीवीसी के वकील सालिसिटर जनरल तुषार मेहता और केंद्र की ओर से अटार्नी जरनल केके वेणुगोपाल की बात सुनी। उसके बाद पीठ ने कुछ क्षण विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के वकील मुकुल रोहतगी के तर्क सुने और महज दो मिनट आदेश पारित करने में लगाए। इस दौरान कोर्ट में तल्ख माहौल नहीं बना बल्कि पूरी कार्रवाही के दौरान वातावरण खुशनुमा रहा।

11:00 बजे : मुख्य न्यायाधीश का खचाखच भरा कक्ष

वर्मा के वकील वरिष्ठ न्यायविद फाली एस नारीमन : सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले (विनीत नारायण केस) को ही पलटने की कोशिश की है, जो अब कानून बन चुका है। इसमें सीबीआई निदेशक का कार्यकाल निर्धारित है और सीवीसी का आदेश भी इस फैसले के निर्देश पर बना है। लेकिन सीवीसी ने आदेश पारित कर निदेशक को उसके कर्तव्यों, शक्ति और पर्यवेक्षण की भूमिका से वंचित कर दिया है। सरकार ने 24 तारीख को ही दिल्ली पुलिस स्पेशल इस्टेबलिशमेंट एक्ट (डीपीएसई) के तहत उन्हें छुट्टी पर भेजकर संयुक्त निदेशक नागेश्वर राव को कार्यकारी निदेशक बना दिया और सीवीसी ने जांच का आदेश दे दिया। जबकि डीपीएसई एक्ट की धारा 4 ए के तहत केंद्र सरकार निदेशक की नियुक्ति करती है, जिसके लिए कोलेजियम (पीएम, सीजेआई और नेता विपक्ष) की अनुमति चाहिए।

(इस बीच तीनों जज आपस में बातचीत करने लगे, नारीमन रुक गए) 

बात खत्म होने पर मुख्य न्यायाधीश : आप कहिए, हम कुछ और बात कर रहे थे, जिसका केस से कुछ लेना देना नहीं है।

नारीमन : दरअसल जब जज बात करते हैं तो मुवक्किल सोचता है उसके केस के बारे में बात हो रही है।

मुख्य न्यायाधीश : अटार्नी जनरल आप बताएं, इस मामले मे क्या अंतरिम व्यवस्था हो। हम सोच रहे हैं कि सीवीसी को जांच करने देते हैं, यह जांच वह 10 दिन में पूरी करेंगे और इसकी निगरानी इस अदालत के मौजूदा या पूर्व जज करेंगे।

अटार्नी जनरल :  माईलॉर्ड इस मामले में एक शख्य अस्थाना भी है। जांच के लिए समय कुछ ज्यादा होना चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश :  मिस्टर अटार्नी इस मामले में अस्थाना मुद्दा नहीं है। समय इससे ज्यादा नहीं मिलेगा। हम कहते हैं कि तब तक अंतरिम निदेशक कोई नीतिगत फैसला नहीं लेंगे। एजेंसी को चलाने के लिए रुटीन वर्क करेंगे।

अटार्नी जरनल : मगर माईलार्ड इस मामले में 1000 पन्नों के दस्तावेज हैं।

मुख्य न्यायाधीश :  चिंता मत कीजिए, जांच का दायरा सीमित होगा और यह 24 अक्तूबर के कैबिनेट नोट में लगाए गए आरोपों पर ही होगा, इसमें देखा जाएगा कि प्रथमदृष्टया मामला बनता है या नहीं।

सीवीसी के वकील तुषार मेहता :  मैं सीवीसी के लिए हाजिर हुआ हूं, जांच के लिए 10 दिन उपयुक्त नहीं हैं।

मुख्य न्यायाधीश : तो ठीक है फिर आप 240 घंटे ले लीजिए (चारों ओर हंसी के ठहाके)….  इससे ज्यादा समय नहीं मिलेगा हम नहीं चाहते यह मामला लंबा खिंचे, यह देशहित में नहीं होगा।

तुषार मेहता : माई लॉर्ड बीच में दीवाली अवकाश आ रहा है। कृपया देंखे कि सीवीसी एक्ट की धारा 40 के तहत उसे सीबीआई पर एक अलग से रिपोर्ट बनानी पड़ती है और इसे संसद में रखना होता है। फिर कोर्ट भी दीवाली के बाद खुलेगा

मुख्य न्यायाधीश : मिस्टर मेहता दीवाली का सीवीसी से कोई लेना देना नहीं है। सीबीआई और सीवीसी के लिए दिवाली नहीं होती। वहीं कोर्ट के खुलने से जांच का कोई संबंध नहीं है। हमें सीवीसी पर यकीन है वह समय से जांच पूरी करेंगे।

‘आपकी बस छूट चुकी है…’

अस्थाना के वकील मुकुल रोहतगी :  माईलार्ड मैं राकेश अस्थाना के लिए हूं

मुख्य न्यायाधीश (हंस कर):  आपकी बस छूट चुकी है। आपकी कोई याचिका नहीं है। हमारे सामने कोई पेपर नहीं है। कुछ नहीं सुनेंगे।

रोहतगी : माईलार्ड मुझे कोर्ट आने की अनुमति दी जाए। हम याचिका दायर कर रहे हैं।

मुख्य न्यायाधीश : ठीक है आप याचिका दायर कीजिए

रोहतगी : इसे सोमवार को सुनवाई के लिए लगाया जाए

मुख्य न्यायाधीश : देखते हैं आप याचिका लगाइये।

कामन काज के वकील वकील दुष्यंत दवे : कार्यकारी निदेशक ने कई स्थानांतरण कर दिए हैं।

मुख्य न्यायाधीश : ठीक है दोनों याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हैं। (आदेश लिखवाया) सुनवाई दिवाली के बाद 12 नवंबर को होगी।

तुषार मेहता(सीवीसी के वकील) : माईलॉर्ड सीवीसी पर निगरानी करना उचित नहीं होगा। वह स्वायत्त निकाय है, यह निगरानी उसकी विश्वनीयता पर प्रतिबिंबित होगा।

मुख्य न्यायाधीश : हम स्पष्ट करते हैं कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए निगरानी एक बार के अपवाद के रूप में है, यह उचित कार्रवाई है। इसे सरकार के किसी प्राधिकार के कार्य पर प्रतिबिंबित नहीं समझा जाना चाहिए।

11: 20 बजे (बेंच उठ गई)

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