अयोध्या में राम मंदिर को लेकर चढ़ने लगा सियासी पारा,

अयोध्या में राम मंदिर को लेकर चढ़ने लगा सियासी पारा,

अयोध्या एक बार फिर सुर्खियों में है। धार्मिक संगठनों से लेकर सियासी दल के नेता इस पर बयानबाजी करने से गुरेज नहीं कर रहे। लोकसभा चुनाव की आहट देखकर अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा एक बार फिर गर्माने की कोशिशें तेज ही गई हैं। मंदिर बनाने के लिए अपनी-अपनी दलीलें दी जा रही हैं। आरएसएस के बाद अब शिवसेना ने भी अयोध्या में मंदिर निर्माण की मांग तेज कर दी है। यह बात अलग है कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। इसके बाद भी अयोध्या में राम मंदिर को लेकर सियासी पारा चढ़े तो हैरत नहीं।

अयोध्या आस्था का विषय

अयोध्या हिंदुओं के लिए आस्था का विषय है इसे सियासी लोग बहुत अच्छी तरह से समझते हैं। इसीलिए वर्षों से शांत रहने वाला मामला अचानक चुनावी मौसम में जोर पकड़ने लगता है। लोकसभा चुनाव में अब अधिक समय न होने की वजह से नेताओं को राम मंदिर की याद फिर आने लगी है। राम मंदिर को लेकर सियासी लाभ लेने की यह होड़ बढ़ती जा रही है। शिवसेना ने मिशन अयोध्या अभियान शुरू किया है। इसमें शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे 25 नवंबर को अयोध्या आ रहे हैं। उनके आने से पहले शिवसेना के लोग अयोध्या में साधू-संतों के बीच मंदिर बनाने को लेकर माहौल बनाने में जुट गए हैं।

अनशन से लेकर रैली तक

अयोध्या में मंदिर निर्माण को लेकर आमरण अनशन से लेकर रैली तक की जा रही है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने साफ किया है कि राम किसी एक संप्रदाय के नहीं हैं। केंद्र सरकार किसी तरह कानून लाए। लोग यह पूछ रहे हैं कि उनके द्वारा चुनी गई सरकार है फिर भी राम मंदिर क्यों नहीं? मोहन भागवत का यह बयान चुनावी मौसम में काफी मायने रखता है। केंद्र सरकार से वह यह भी अपील कर चुके हैं कि सरकार कानून बनाकर मंदिर बनाने का रास्ता साफ करे। अयोध्या में मंदिर को लेकर संत स्वामी परमहंस दास आमरण अनशन पर बैठे, तो अंतराष्ट्रीय हिंदू परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. प्रवीण तोगाड़िया ने यह तक कह दिया कि मंदिर नहीं तो वोट नहीं।

अयोध्या को लेकर सरकार सतर्क

अयोध्या में राम मंदिर को लेकर जहां सियासी पारा दिनों-दिन चढ़ता जा रहा है, वहीं राज्य सरकार इसको लेकर पूरी तरह से सतर्कता बरत रही है। राज्य सरकार अयोध्या की सुरक्षा को लेकर बेहद गंभीर है। वहां बिना अनुमति किसी को रैली करने की अनुमति नहीं दी जा रही है। शायद इसीलिए शिवसेना प्रमुख के अयोध्या पहुंचने से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को विश्वास में लिया जा रहा है।

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