कार्य संस्कृति बदली, चुनौतियां भी बढ़ीं

कार्य संस्कृति बदली, चुनौतियां भी बढ़ीं

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक साल का सफर खासा दिलचस्प, सुखद व उतार-चढ़ाव वाला रहा है। कानून व्यवस्था के मोर्चे पर अभी काफी कुछ किया जाना है तो बिगड़ैल नौकरशाही से अपने फैसलों पर अमल करा पाना भी मुश्किल दिखता है। इसकी झलक कहीं न कहीं लोकसभा उपचुनाव के नतीजों में दिख ही जाती है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि मुख्यमंत्री योगी ने आते ही शासन प्रशासन की जकड़न को तोड़ा और नई कार्यसंस्कृति लाने कीकोशिश की। उनके काम की रफ्तार तो तेज रही, पर अफसर अपने पुराने रवैये के कारण उनके साथ कदमताल करने में उतनी तेजी नहीं दिखा सके।

बदलाव लाने की ईमानदार कोशिशें: यूपी जैसे राज्य में चौदह साल बाद सत्ता में लौटी भाजपा ने मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ का चयन उनकी ईमानदारी व हिन्दुत्ववादी छवि के आधार पर किया पर योगी ने अपनी पुरानी पूंजी के साथ-साथ विकास पर फोकस किया। यूपी में कई सार्वजनिक अवकाश खत्म करने, एंटी रोमियो दस्ता बनाने, बूचड़खाने पर रोक लगाने, गोरक्षा पर फोकस करने के साथ-साथ शिक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर पर विशेष ध्यान दिया।

आत्मविश्वास..और अति आत्मविश्वास: इन कामों ने पार्टी व सरकार का आत्मविश्वास बढ़ा दिया। निकाय चुनाव में भी बड़ी कामयाबी मिली।..यह आत्मविश्वास अति आत्मविश्वास में बदलने लगा..किसी को अहसास ही नहीं हुआ.सपा-बसपा की एकजुटता को भाजपा समझ नहीं पाई। गोरखपुर व फूलपुर लोकसभा उपचुनाव के नतीजे आए। पार्टी बुरी तरह हारी। यह बड़ी ठोकर मानी गई।

बेहतर सबक: अब योगी आदित्यनाथ इसे चूक भी मानते हैं और बेहतर सबक भी। योगी कहते हैं कि ‘पार्टी की बढ़ती ताकत का नतीजा है कि सपा-बसपा को एक साथ आना पड़ा। अच्छा हुआ हम गहरी खाई में गिरने से बच गये।’ एक साल पूरा होते-होते मुख्यमंत्री और उनकी पार्टी के सामने एक मजबूत विपक्ष के रूप में सपा-बसपा की दोस्ती की दीवार जरूर खड़ी हो गई। पर, भाजपा की सरकार ने उनके नेतृत्व में कई बड़े काम कर दिये और वह भी शायद पहली बार। उनके कार्यकाल में सबसे बड़ी बात। कार्यसंस्कृति व आचरण में बदलाव। उपचुनाव के नतीजे आने के बाद जिसके लिये वह जाने जाते हैं। एक गोरक्षनाथ पीठ के पीठाधीश्वर के कर्तव्य व मुख्यमंत्री के कर्तव्य के बीच उन्होंने बेहतर संतुलन बनाया हुआ है। यही कारण है कि वह बिना भेदभाव के काम करते हुए नई पहल का साहस करते हैं। उनका विजन बहुत स्पष्ट है। यूपी को आगे बढ़ाने का। वह बिना हिचक के पुराने अंधविश्वास को किनारे कर नोएडा की यात्र कर आते हैं। उनके पूर्ववर्ती अखिलेश यादव ने डर के कारण नोएडा की यात्र नहीं की। साफ-साफ बात करने के लिए चर्चित योगी ने इसीलिए खुल कर कहा कि वह ईद नहीं मनाते हैं क्योंकि वह हिन्दू हैं और उन लोगों में नहीं हैं जो घर से बाहर निकलने पर टोपी लगा लेते हैं। दलगत राजनीति से उपर उठकर काम करने की प्रवृत्ति के कारण भाजपा सरकार ने मायावती सरकार द्वारा बनवाए गये स्मारकों व मूर्तियों के रखरखाव के लिए भारी रकम दिलवाई। तो सरकारी दफ्तरों में अम्बेडकर के चित्र लगाने का आदेश भी इसी सरकार ने दिया। भाजपा सरकार ने अपनी पारी की शुरुआत बूचड़खानों पर प्रतिबंध व एंटी रोमियो स्क्वॉड बना कर की। जब बिगड़ैल नौकरशाही ने देखा कि नए मुख्यमंत्री तो देर रात तक सचिवालय में काम करने के निकल पड़े हैं तो अनमने ही सही अफसरों ने अपने पुराने रवैये में बदलाव लाना शुरू किया । सीएम ने पहले ही बता दिया कि उनके साथ वही अधिकारी आयें जो 16 से 18 घंटे अपने काम को दे सकें।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने यूपी में परंपराओं को अतिरिक्त उत्सवधर्मिता प्रदान की और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की जड़ों को मजबूत किया। अयोध्या में राम-लक्ष्मण-सीता की झांकी को पुनर्जीवित कर दीपोत्सव मनाया तो मथुरा में होली के रंग उड़ेले। शायद पहली बार भाजपा सरकार ने वहां मथुरा, बरसाना में धूमधाम से होली मनाई। यही नहीं,पहली बार सरकार ने यूपी दिवस शुरू उत्तर प्रदेश को आत्मगौरव से लबरेज किया।

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