सुप्रीम कोर्ट ने महज कुछ घंटों बाद मणिपुर से रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेजे पर रोक लगाने से गुरुवार को साफ इनकार कर दिया। भारत की तरफ से आधिकारिक तौर पर म्यांमार प्रत्यर्पण का यह पहला मामला है।
वकील प्रशांत भूषण ने इस में सुप्रीम कोर्ट से दखल देने की मांग की थी और कहा था कि यह अदालत का कर्तव्य है कि वह राज्य विहीन रोहिंग्या शरणार्थियों की रक्षा करे।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने प्रशांत भूषण से कहा कि उन्हें इस बात को याद दिलाने की कोई आवश्यता नहीं है कि जजों की क्या जिम्मेदारियां हैं। गृह मंत्रालय ने हलफनामा दायर कर कहा था कि सात रोहिंग्या अपनी सजा पूरी करने के बाद वापस म्यांमार जाने को तैयार हैं। अवैध प्रवासी थे और उन्हें फॉरनर्स एक्ट में दोषी पाया गया था।
सरकारी वकील ने कहा- म्यांमार वापस लेने को है तैयार
सरकार की तरफ से पेश हुए सीनियर कानूनी अधिकारी तुषार मेहता ने कोर्ट से बताया कि म्यांमार सरकार ने इस बात को माना है कि वे उनके नागरिक हैं और उनको पहचान के लिए सार्टिफिकेट दिए हैं ताकि उनकी वापसी हो सके।
असम के हिरासत शिविर में करीब 32 रोहिंग्या शरणार्थी है। इनमें से नाबालिग समेत करीब 15 रोंहिग्या शरणार्थी तेजपुर में हैं। ऐसा माना जा रहा है कि इनमें से ज्यादातर म्यांमार के रखाइन राज्य के हैं जिन्हें साल 2014 में रेलवे पुलिस ने पकड़ा था।