आश्विन कृष्ण पक्ष नवमी तिथि को मातृ नवमी कहा जाता है। इस तिथि का श्राद्ध पक्ष में बहुत महत्व माना जाता है। नवमी तिथि का श्राद्ध मूल रूप से माता के निमित्त किया जाता है। यह तिथि माता और परिवार की विवाहित महिलाओं के श्राद्ध के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन पुत्रवधू, स्वर्गवासी सास व माता के सम्मान में धार्मिक कृत्य करती हैं। इस श्राद्ध को सौभाग्यवती श्राद्ध भी कहा जाता है। कुछ स्थानों पर इसे डोकरा नवमी भी कहा जाता है।
मान्यता है कि नवमी का श्राद्ध करने पर परिवार में धन, संपत्ति एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। नवमी श्राद्ध में पांच ब्राह्मणों और एक ब्राह्मणी को भोजन कराने का विधान है। घर की दक्षिण दिशा में हरा वस्त्र बिछाएं। पितृगण के निमित्त तिल के तेल का दीपक जलाएं। जल में मिश्री और तिल मिलाकर तर्पण करें। पितरों के समक्ष तुलसी पत्र समर्पित करें। ब्राह्मणों को लौकी की खीर, पालक, मूंगदाल, पूड़ी, हरे फल, लौंग-इलायची तथा मिश्री अर्पित करें। श्राद्ध करने वाले को कुश के आसन पर बैठकर भागवत गीता के नौवें अध्याय का पाठ करना चाहिए। वस्त्र, धन का दान करना चाहिए।