चार सालों में आज मोदी सरकार की पहली अग्निपरीक्षा है। तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) और वाईएसआर कांग्रेस आज मोदी सरकार के खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाएगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या इस प्रस्ताव से सरकार के गिरने का कोई खतरा है या नहीं? दरअसल मौजूद समीकरणों के हिसाब से इस प्रस्ताव से मोदी सरकार को कोई खतरा नहीं है।
मोदी सरकार ने भी भरोसा जताया है कि अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस स्वीकार कर लिये जाने पर भी लोकसभा में उसकी संख्या बल के कारण प्रस्ताव औंधे मुंह गिर जाएगा। दरअसल लोकसभा में मौजूदा सदस्यों की संख्या 539 है। इस लिहाज से बहुमत का आंकड़ा 270 होता है। सत्तारूढ़ भाजपा के 274 सदस्य हैं। यह बहुमत से अधिक है और पार्टी को कई घटक दलों का समर्थन भी है।
बीजेपी का सहयोगी दलों के कुल 41 सांसद हैं। इसमें अकसर मोदी सरकार से नाराज रहने वाली शिवसेना के 18 सांसद है जिसका रुख अभी स्पष्ट नहीं है कि वह अविश्वास प्रस्ताव को समर्थन देगी या नहीं। अन्य की बात करें तो एलजेपी के 6, अकाली दल के 4, आरएलएसपी के 3, अपना दल के 2 सांसद हैं। AINRC, JKPDP, NPP, PMK, SDF और स्वाभिमानी पक्ष के एक-एक सांसद हैं।
मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को लेकर AIADMK ने अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है। इसके 37 सांसद हैं।
क्या होता है अविश्वास प्रस्ताव
यह लोकसभा में विपक्षा पार्टी की तरफ से सरकार के खिलाफ लाया जाने वाला प्रस्ताव है। अगर विपक्षी पार्टी को ऐसा लगता है कि सरकार के पास आवश्यक बहुमत नहीं है तो वह यह प्रस्ताव लाती है। यह केवल लोकसभा में पेश किया जाता है।
पहला अविश्वास प्रस्ताव जवाहर लाल नेहरू की सरकार के खिलाफ लाया गया था। 1963 में जेबी कृपलानी ने संसद में नेहरु सरकार के खिलाफ प्रस्ताव रखा था। लेकिन इसके पक्ष में केवल 62 वोट पड़े थे जबकि प्रस्ताव के विरोध में 347 पोट पड़े थे।