बिहार के मधेपुरा में एक महादलित व्यक्ति को अपनी पत्नी का शव मजबूरन अपने घर में ही दफनाना पड़ा, क्योंकि भूमिहीन मजदूर की पत्नी को दफन के लिए पड़ोसियों ने दो गज जमीन देने से इनकार कर दिया। गांव में कोई सार्वजनिक श्मशान नहीं है।
जिले के कुमारखंड प्रखंड के केवटगामा गांव के 40 वर्षीय हरिनारायण रिषिदेव एक भूमिहीन दिहाड़ी मजदूर हैँ। उन्होंने बताया कि उनकी 35 वर्षीय सहोगिया देवी रविवार को डायरिया से पीड़ित हो गई और अगले दिन उनकी मौत हो गई। रिषिदेव ने बताया कि जब किसी ग्रामीण ने अपनी जमीन में पत्नी का शव दफनाने की अनुमति नहीं दी तो उन्होंने अपने घर में दफनाने का निर्णय किया।
यह घटना देश के सबसे पिछड़े इलाके की उस हासिए पर रह रहे समुदाय की है जिसे पहले अस्पृश्य माना जाता था। इनमें से अधिकांश अब भी सामाजिक विषमता और आर्थिक विपन्नता के शिकार हैं। बिहार में महादलित नीतीश सरकार द्वारा वर्गीकृत एक श्रेणी है जिनमें दलितों में भी सबसे पिछड़ों को रखा गया है।
हरिनारायण ने बताया कि यहां भूमिहीन लोगों को गरिमा से जीने का हक भी नहीं है और मरने के बाद भी उन्हें दो गज जमीन नसीब नहीं हो पाती है। उन्होंने हर पंचायत में एक सामुदायिक श्मशान बनाने की मांग करते हुए कहा, ‘मैं नहीं चाहता कि मेरे जैसे अन्य भूमिहीन भाइयों को ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़े।’ गांव के पूर्व मुखिया बेचन रिषिदेव ने हरिनारायण की शिकायत से सहमति जताई। उन्होंने कहा, ‘दमित, भूमिहीन अनुसूचित जाति के लोगों को मरने के बाद भी शांति मिलना मुश्किल है। हरिनारायण की व्यथा सरकार तक पहुंचनी चाहिए और तत्काल सरकार को इस दिशा में कदम उठाना चाहिए अन्यथा हम आंदोलन को मजबूर हो जाएंगे।’
इसी गांव की कारो देवी ने कहा कि हरिनारायण ने पत्नी को घर में दफना कर एक तरह से लाखों अनुसूचित जाति समुदाय के लोगों के दुख और मौलिक अधिकारों के हनन को उजागर कर दिया है। घटना की सूचना मिलने पर मधेपुरा के अनुमंडल पदाधिकारी बृंदा लाल कुमारखंड प्रखंड के अंचलाधिकारी के साथ गांव पहुंचे। उन्होंने कहा, ‘हम गांव जा रहे हैं और ग्रामीणों व मुखिया से बात करने के बाद श्मशान के लिए जमीन की व्यवस्था की जाएगी।’