भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन अघोर चतुर्दशी मनाई जाती है। इसे डगयाली भी कहा जाता है। इसके अगले दिन अमावस्या को बड़ी डगयाली या कुशाग्रहणी अमावस्या कहा जाता है। अघोर चतुर्दशी भगवान शिव के भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अघोर चतुर्दशी के दिन तर्पण, दान-पुण्य का विशेष महत्व है। मान्यता है कि काशी का सृजन भगवान शिव ने अघोर चतुर्दशी के दिन ही किया था।
कहा जाता है कि काशी नगरी धरती पर नहीं, भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी है। यह भी मान्यता है कि 14 सौ करोड़ वर्ष पूर्व काशी अस्तित्व में आई थी। अघोर चतुर्दशी के दिन पितरों के लिए किए जाने वाले कार्य किए जाते हैं। इस दिन पितरों के लिए व्रत करने से उनकी आत्मा को शांति प्राप्त होती है। अघोर चतुर्दशी को लेकर कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव के गण, भूत-प्रेत आदि को स्वतंत्रता प्राप्त होती है। अघोर चतुर्दशी के अगले दिन कुशाग्रहणी अमावस्या पर सालभर के धार्मिक कार्यों के लिए कुश एकत्र की जाती है। प्रत्येक धार्मिक कार्य के लिए इस कुश का इस्तेमाल किया जाता है। इस दिन भगवान शिव का ध्यान करें। यह दिन संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।