डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पूरी दुनिया को शिक्षकों का सम्मान करना सिखाया। देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति रहे भारत रत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिवस उनकी महानताओं के कारण हर साल पांच सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन देश में श्रेष्ठ शिक्षकों को पुरस्कार देकर सम्मानित किया जाता है।
महान शिक्षक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 1931 में ब्रिटिश साम्राज्य ने ‘सर’ की उपाधि प्रदान की। वह उस समय 43 साल के थे। लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस उपाधि का औचित्य डॉ़ राधाकृष्णन के लिए समाप्त हो गया। जब वह उपराष्ट्रपति बने तो स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ़ राजेंद्र प्रसाद ने 1954 में उन्हें उनकी महान दार्शनिक व शैक्षिक उपलब्धियों के लिए देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया। डॉ. राधाकृष्णन स्वतंत्रता के बाद 1947 से 1949 तक संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य बने। इसी समय वह कई विश्वविद्यालयों के चेयरमैन भी नियुक्त किए गए।
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि डॉ. राधाकृष्णन के संभाषण एवं वैचारिक प्रतिभा का उपयोग 14-15 अगस्त 1947 की रात्रि को उस समय किया जाए जब संविधान सभा का ऐतिहासिक सत्र आयोजित हो। डॉ. राधाकृष्णन को यह निर्देश दिया गया कि वह अपना संबोधन रात्रि ठीक 12 बजे समाप्त करें, क्योंकि उसके बाद ही पंडित नेहरू के नेतृत्व में संवैधानिक संसद द्वारा शपथ ली जानी थी। 1952 में सोवियत संघ से आने के बाद डॉ. राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति निर्वाचित किए गए। संविधान के अंतर्गत उपराष्ट्रपति का नया पद सृजित किया गया।