एक बार एक युवक को संघर्ष करते-करते कई वर्ष हो गए लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। वह काफी निराश हो गया, और नकारात्मक विचारो ने उसे घेर लिया। उसने इस कदर उम्मीद खो दी कि उसने आत्महत्या करने का मन बना लिया। वह जंगल में गया और वह आत्महत्या करने ही जा रहा था कि अचानक एक संत ने उसे देख लिया।
संत ने उससे कहा बच्चे क्या बात ह , तुम इस घनघोर जंगल में क्या कर रहे हो? उस युवक ने जवाब दिया मैं जीवन में संघर्ष करते-करते थक गया हूं और मैं आत्महत्या करके अपने बेकार जीवन को नष्ट करने आया हूं। संत ने पूछा तुम कितने दिनों से संघर्ष कर रहे हों?
युवक ने कहा मुझे दो वर्ष के लगभग हो गए, मुझे ना तो कहीं नौकरी मिली है, और ना ही किसी परीक्षा में सफल हो सका हूं। संत ने कहा तुम्हे नौकरी भी मिल जाएगी और तुम सफल भी हो जायोगे। निराश न हो, कुछ दिन और प्रयास करो। युवक ने कहा मैं किसी भी काम के योग्य नहीं हूं, अब मुझसे कुछ नहीं होगा। जब संत ने देखा कि युवक बिलकुल हिम्मत हार चुका है तो उन्होंने उसे एक कहानी सुनाई।
एक बार एक बच्चे ने दो पौधे लगाये, एक बांस का और एक नागफनी का। नागफनी वाले पौधे में तो कुछ ही दिनों में पत्तियां निकल आई। और वह पौधा एक साल में काफी बढ़ गया पर बांस के पौधे में साल भर में कुछ नहीं हुआ। लेकिन बच्चा निराश नहीं हुआ।
दूसरे वर्ष में भी बांस के पौधे में कुछ नहीं हुआ। लेकिन नागफनी का पौधा और बढ़ गया। बच्चे ने फिर भी निराशा नहीं दिखाई। तीसरे वर्ष और चौथे वर्ष भी बांस का पौधा वैसा ही रहा, लेकिन नागफनी का पौधा और बड़ा हो गया। बच्चा फिर भी निराश नहीं हुआ।
फिर कुछ दिनों बाद बांस के पौधे में अंकुर फूटे और देखते-देखते कुछ ही दिनों में बांस का पेड़ काफी ऊंचा हो गया। बांस के पेड़ को अपनी जड़ों को मजबूत करने में चार पांच साल लग गए।
संत ने युवक से कहा कि यह तेरे संघर्ष का समय, अपनी जड़ें मजबूत करने का समय है। इस समय को व्यर्थ मत समझ और निराश न हो। जैसे ही तेरी जड़ें मजबूत हो जाएगी, तेरी सारी समस्याओं का निदान हो जायेगा।