पुत्रदा एकादशी व्रत से गाय के महत्व का पता चलता है। गाय में तो वैसे भी सभी देवी-देवताओं का वास माना गया है। पद्म पुराण श्रेष्ठ संतान और ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी व्रत करने को प्रेरित करता है। इस एकादशी को पवित्रा और पापनाशिनी एकादशी भी कहते हैंं। संतानहीन इस व्रत से संतान प्राप्त कर सकता है। इस व्रत से लक्ष्मी जी भी प्रसन्न होती हैं। शिवजी भी प्रसन्न होते हैं, क्योंकि यह उनके प्रिय श्रावण मास में आती है। संभव हो तो इस दिन शिव जी का अभिषेक जरूर करें। यह व्रत पौष और श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही किया जाता है। इस बार यह 22 अगस्त को है।
पुत्रदा एकादशी व्रत रखने वाले व्यक्ति को दशमी के दिन लहसुन, प्याज आदि नहीं खाना चाहिए। पुत्रदा एकादशी के दिन सुबह स्नान कर ‘मम समस्तदुरितक्षयपूर्वकंश्रीपरमेश्वर प्रीत्यर्थं श्रावणशुक्लैकादशीव्रतमहं करिष्ये’ का संकल्प करके पूजन और उपवास करना चाहिए। भगवान विष्णु और विशेषकर बाल गोपाल रूप की पूजा करनी चाहिए। द्वादशी को भगवान विष्णु को अर्घ्य देकर पूजा सम्पन्न करनी चाहिए।
इस व्रत के बारे में यह कथा बहुत प्रचलित है। धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा श्रावण शुक्ल एकादशी व्रत के बारे में पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा-‘द्वापर युग की शुरुआत में माहिष्मतीपुर में राजा महीजित धर्मानुसार राज्य करते थे, लेकिन उनके कोई पुत्र नहीं था। एक दिन दरबार में उन्होंने अपनी यह पीड़ा प्रजा और पुरोहितों के सामने रखी। प्रजा ने राजा के कष्ट को दूर करने के लिए लोमश ऋषि के पास जाने का निश्चय किया। सब लोग उस वन में गए, जहां लोमश ऋषि साधना कर रहे थे। लोगों ने जब राजा के दुख के समाधान के लिए लोमश ऋषि से पूछा, तो उन्होंने कहा- ‘राजा ने पिछले जन्म में भूखी-प्यासी गाय और उसके बछडे़ को जान-बूझकर जल पीने से रोक दिया था। अगर राजा पुत्रदा एकादशी व्रत करें *तो उनकी मनोकामना पूर्ण हो सकती है।’ उसके बाद राजा ने प्रजा सहित *व्रत किया और रात में जागरण भी किया। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई।