एक पेड़ के नीचे कुछ मेढ़क बैठे चर्चा कर रहे थे कि वे हमेशा तालाब या निचले इलाके में रहते हैं। उनकी अकर्मण्यता के कारण लोग उनके नाम पर मुहावरा (कुंए का मेढ़क हो गया है) भी बोलने लगे हैं। मेढ़कों में से एक सदस्य ने अपनी चिंता जाहिर करते हुए तय किया कि वह इस पेड़ की चोटी पर चढ़ेगा। वह दुनिया को दिखाएगा कि मेढ़क सिर्फ कुंए के नहीं होते बल्कि वह ऊंचे से ऊंचे पेढ़ पर भी चढ़ सकते हैं।
इतना कहते ही वह पेड़ की तरफ मुड़़ गया और पेड़ की ओर आगे बढ़ने लगा। तभी उसके सभी साथी जोर से चिल्लाए, “यह असंभव है। तुम पेड़ पर नहीं चढ़ सकते।” लेकिन मेढ़क लगातार पेड़ की सबसे ऊंची शाखा पर पहुंचने की कोशिश करता रहा और आखिर में चोटी पर पहुंचने में कामयाब हुआ।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि वह पेड़ पर चढ़ने में क्यों कामयाब रहा..? मेढ़क की कामयाबी राज है वह बहरा था। जब उसके साथियों ने उसे चिल्लाकर रोकना चाहा तो उसने कुछ सुना ही नहीं, इसलिए पेड़ की ससबे ऊंची चोटी पर चढ़ पाया। वह किसी बात सुने बिना अपनी धुन पर मस्त रहा और धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा और सफल हुआ।
हम किसी की बात सुने बिना अपनी धुन में मस्त रहें तो सफलता के शिखर पर चढ़ने से हमें कोई नहीं रोक सकता