सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि राज्यों को अधिकार है कि वे राज्य कोटा सीटों पर एमबीबीएस, बीडीएस और आयुर्वेद के बेसिक मेडिकल कोर्स के लिए आवश्यक शैक्षणिक योग्यता, आवासीय/ डोमिसाइल की योग्यताएं तय करें। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला बीडीएस और एमबीबीएस कोर्स के कुछ उम्मीदवार छात्रों की याचिका पर दिया। इस याचिका में उन्होंने असम के मेडिकल और डेंटल कॉलेज रूल्स के नियम 3 (1) (सी) को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि स्टेट कोटा सीट के लिए उम्मीदवार को राज्य में सातवीं कक्षा से 12वीं तक की पढ़ाई करना आवश्यक है।
इस मामले में अपवाद सिर्फ उन्हीं के लिए था, जिनके माता-पिता राज्य या केंद्र सरकार की सेवा में हैं और राज्य से बाहर रह रहे हैं। छात्रों का कहना था कि ऐसा कोई सबूत नहीं है, जिसमें यह कहा गया हो कि जो छात्र कक्षा सात से 12 तक राज्य में नहीं पढ़े हैं, वे एमबीबीएस की डिग्री लेकर राज्य में सेवा करने के इच्छुक नहीं होते। उन्होंने कहा कि राज्य ने यह नियम पहले ही बना रखा है कि मेडिकल या डेंटल की डिग्री लेने के बाद उन्हें राज्य में पांच वर्ष तक सेवा करनी होगी और या एक वर्ष के लिए ग्रामीण क्षेत्र में काम करना होगा। इसका उल्लंघन करने पर 30 लाख रुपये का जुर्माना देना होगा। छात्रों ने कहा कि इस नियम को देखते हुए नियम 3 (1) (सी) की आवश्यकता निर्देशात्मक रह जानी चाहिए, अनिवार्य नहीं।
लेकिन जस्टिस अरुण मिश्रा और एस.ए. नजीर की पीठ ने छात्रों की याचिका खारिज कर दी। पीठ ने कहा कि इस नियम का उद्देश्य यह है कि छात्र मेडिकल शिक्षा लेकर राज्य में सेवा कर सकें। वहीं डोमिसाइल के लिए शैक्षणिक योग्यता के बारे में सुप्रीम कोर्ट पहले ही तय कर चुका है कि राज्य को इस बारे में नियम तय करने का अधिकार है। पीठ ने कहा कि इस मामले में पीजी और डॉक्टोरल कोर्स के लिए अपवाद सृजित किए गए हैं, जिन्हें बेसिक कोर्स के लिए लागू नहीं किया जा सकता।