चार दिन बाद जश्न-ए-आजादी है, लेकिन 83 जांबाजों के परिजनों के इंतजार की कोई सीमा नहीं। ये देश की सीमाओं की हिफाजत के लिए घर से निकले थे, लेकिन देश इनकी हिफाजत नहीं कर सका। इनमे से कुछ 1965, 1971 और बाकी 2010 तक अलग-अलग अभियानों में शामिल रहे। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान’ ने आरटीआई के जरिए यह सवाल उठाया कि हमारे देश के कितने सैनिक युद्धबंदी है और कितने गुमशुदा।
देश की सीमाओं पर तैनात सेना के 83 शूरवीर किस हाल में हैं, कोई खबर नहीं। आरटीआई के जवाब में यह खुलासा हुआ है। इनमें से 62 जांबाज युद्ध में बंदी बनाए गए और पाकिस्तान की जेलों में कैद हैं। बाकी 21 शांतिकाल में सीमा से लापता हुए हैं।
शांतिकाल में भी खोए जांबाज:
विदेश मंत्रालय की सूचना के मुताबिक 1996 से 2010 के बीच 21 फौजी सरहद से लापता हुए। उनकी शहादत का कोई सबूत मिला न बंदी होने का। शांतिकाल के लापता सैनिकों में सबसे पुराना मामला कैप्टेन अविनेश शर्मा का है। वह 15 अगस्त 1996 को लापता हुए। सबसे ताजा मामला हवलदार रंजीत सिंह, लांस हवलदार राकेश कुमार, रायफलमैन तेवांग दोरजई और एस कर्मा नामगेल का है। चारों एक साथ 6 अगस्त 2010 को लापता हुए थे।
30 जवान कब लापता हुए, पता ही नहीं
विदेश मंत्रालय के पाकिस्तान सेक्शन के मुताबिक 62 में से चार युद्धबंदी 1965 के पाकिस्तान युद्ध के दौरान अगस्त और सितंबर महीनों में लापता हुए। 28 जवान और अफसर 1971 के बांग्लादेश युद्ध के दौरान पाकिस्तान फौज द्वारा पकड़े गए। बाकी 30 जांबाजों के बारे में सरकार को यह भी नहीं पता है कि वे कब से लापता हैं। इनमें से 25 एयरफोर्स के हैं।
यह हैं पाकिस्तान की कैद में होने के सबूत
सन् 65, सन् 71 के युद्धों में यह अधिकारी और जवान पाकिस्तानी फौजों की गिरफ्त में आए। शांति होते ही युद्धबंदियों को वापस सौंपने की नैतिकता और अंतर्राष्ट्रीय कानून, दोनों को पाकिस्तान ने तवज्जे नहीं दी। इसके कई उदाहरण भी हैं।
सेकेंड लेफ्टीनेंट पारसराम शर्मा 1971 के युद्ध के दौरान चंब सेक्टर से लापता हुए। माना गया कि वे शहीद हो गए। लेकिन शर्मा के पिता के मुताबिक उन्होंने 29 नवंबर 1972 को अपने बेटे को रेडियो पाकिस्तान पर बोलते सुना। एक अन्य युद्धबंदी नंबर 9071130 लांस नायक रामलाल (रिटायर्ड) के मुताबिक वह लाहौर जेल में कैद के दौरान पारसराम शर्मा से 20 अप्रैल 73 से 24 अप्रैल 73 के दौरान तीन बार मिले।
कैप्टेन रवींद्र कौड़ा 1971 के युद्ध के दौरान लापता हुए। पाकिस्तान जेल से जून 2000 में रिहा होने वाले भारतीय बंदी रूपलाल सलारिया ने भारत सरकार को बताया कि कैप्टेन रवींद्र कौड़ा, विंग कमांडर हरसेन गिल और स्क्वाड्रन लीडर महिंदर कुमार जैन को उन्होंने पाकिस्तान की साहीवाल जेल में अप्रैल 1998 में देखा। पर पाकिस्तान नहीं मानता।
कैप्टेन संजीत भट्टाचार्जी और लांस नायक राम बहादुर थापा 19 अप्रैल 1997 को कच्छ के रण से लापता हुए। पुष्टि हो चुकी है कि दोनों को पाकिस्तान में पकड़ कर हैदराबाद में पूछताछ की गई फिर उन्हें बलूचिस्तान भेज दिया गया। दोनों जांबाजों के बारे में पाकिस्तानी डीजीएमओ ने एक बार मान भी लिया कि वे फोर्ट सन्दरमन जेल में हैं। लेकिन बाद में पाकिस्तान मुकर गया और कहा कि वे पाकिस्तान में नहीं हैं।
मेजर एके घोष 1971 के युद्ध से लापता हैं। पाकिस्तान की जेल में सलाखों के पीछे कैद मेजर घोष का फोटो टाइम मैगजीन के 27 दिसंबर 1971 के अंक में छपा। बावजूद इसके पाकिस्तान नहीं मानता कि मेजर घोष पाकिस्तान में कैद हैं।
मेजर एके सूरी 1971 के युद्ध से लापता हैं। मेजर सूरी ने 2 दिसंबर 1974 और 15 जनवरी 1975 को दो पत्र लिख कर किसी तरह भेजे। इसमें उन्होंने लिखा कि वह वह कराची जेल में बीस अन्य भारतीय फौजी अफसरों के साथ कैद हैं।
फ्लाइट लेफ्टीनेंट एसके गोस्वामी का कैनबरा प्लेन 5 दिसंबर 1971 को सरगोधा के पास पाकिस्तानी सेना ने गिरा लिया। उनका नाम युद्धबंदी के रूप में रेडियो लाहौर से प्रसारित किया गया था। पर पाकिस्तान ने कभी उनके युद्ध बंदी होने का तथ्य नहीं स्वीकारा।
फ्लाइट लेफ्टीनेंट विजय वसंत तांबे 1971 में जहाज से बमबारी कर रहे थे। उनका जहाज पाकिस्तानी भूमि पर गिरा। पाकिस्तानी अफसरों द्वारा उनके जीवित पकड़े जाने की खबरें कई अखबारों में छपीं। खुद पाकिस्तान के अखबार सनडे पाकिस्तान आब्जर्वर में 5 दिसंबर 1971 के अंक में उनके जीवित पकड़े जाने की खबर छपी।
कूटनीतिक वार्ताओं में उठता है मुद्दा
विदेश मंत्रालय के मुताबिक भारत-पाकिस्तान के बीच हर कूटनीतिक वार्ता में युद्धबंदियों का मुद्दा उठता है। पाकिस्तान हर बार उनके पाकिस्तान की जेलों में होने से इनकार करता है। दोनों देशों के बीच यह युद्धबंदी महज एक नंबर, रैंक और दस्तावेज बन कर रह गए हैं।
आरटीआई का सफर
3 जुलाई को आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान’ ने प्रधानमंत्री कार्यालय को आरटीआई दाखिल की थी। जो 17 जुलाई को विदेश मंत्रालय को अंतरित की गई। विदेश मंत्रालय के पीएआई डिवीजन के पाकिस्तान सेक्शन ने युद्धबंदियों और शांतिकाल में लापता जवानों के नाम और रैंक की सूचना दी लेकिन उनके मूल निवास और पते की सूचना नहीं दी।
इन सवालों के जवाब नहीं मिले
पाकिस्तान की जेलों में बंद भारत के युद्धबंदियों के परिजनों को भारत सरकार द्वारा दी गई सहायता।
भारत द्वारा पाकिस्तान की जेलों से छुड़ाए गए युद्धबंदियों के नामों व पतों की सूचना।