श्रावण मास भगवान शिव की आराधना को समर्पित है। श्रावण मास में लाखों शिवभक्त गंगाजल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करते हैं। जल की यह यात्रा भगवान शिव की आराधना के लिए हैं। मान्यता है कि पूरे श्रावण मास भगवान शिव अपनी ससुराल राजा दक्ष की नगरी कनखल हरिद्वार में निवास करते हैं। भगवान विष्णु के शयन में जाने के कारण तीनों लोक की देखभाल भगवान शिव ही करते हैं। यही वजह है कि कांवड़िये श्रावण माह में गंगाजल लेने हरिद्वार आते हैं।
माना जाता है कि सर्वप्रथम भगवान परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाकर पुरा महादेव में शिवलिंग पर जलाभिषेक किया था। यह भी मान्यता है कि भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष का पान किया था। विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में रोक लिया, इससे उनका शरीर जलने लगा। देवताओं ने उनके ऊपर जल चढ़ाया जिससे भगवान शिव का शरीर शीतल हो गया। इसलिए भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु उन्हें जल अर्पित करते है।
कांवड़ यात्रा में लाखों कांवड़िये कंधे पर गंगा को धारण किए शिवालयों की ओर बढ़ते जाते हैं। सभी कांवड़िये केसरिया रंग के वस्त्र धारण करते हैं और सभी एक दूसरे को भोले कहकर संबोधित करते हैं। कांवड़ के माध्यम से भगवान शिव पर जल अर्पित करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। यात्रा के दौरान किसी प्रकार का व्यसन नहीं करना चाहिए।