दुनिया के मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग का गुरुवार को 76 की उम्र में निधन हो गया। इससे पहले हमने इस महान भौतिक विज्ञानी को लंबे अरसे तक एक व्हीलचेयर से चिपका देखा। दरअसल हॉकिंग 55 साल से एक बेहद घातक और जानलेवा बीमारी से लड़ते रहे। 8 जनवरी 1942 को ऑक्सफोर्ड में जन्में हॉकिंग को महज 21 साल की उम्र में एएलएस यानी एम्योट्रॉफिक लेटरल स्क्लेरोसिस नाम की खतरनाक बीमारी ने अपनी चपेट में ले लिया था। इस बीमारी ने उनके शरीर को बिल्कुल शक्तिहीन कर दिया था। लेकिन ये बीमारी विज्ञान में उनके योगदान को नहीं रोक सकी। यहां हम इस बीमारी के बार में विस्तार से जानते हैं –
दुनिया को ब्रह्मांड के रहस्य बताने वाले हॉकिंग एएलएस बीमारी के सबसे मशहूर पीड़ित बन गए थे। आमतौर पर इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति 2 से 3 साल के भीतर दम तोड़ देते हैं। लेकिन हॉकिंग ने सब दावों को गलत साबित कर दिया और पांच दशकों तक इस बीमारी से लड़ते रहे।
पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर हो जाता है पीड़ित शख्स
इस न्यूरोडिजेनरेटिव स्थिति में दिमाग और स्पाइन कॉर्ड (मेरूरज्जू) के मोटर नर्व सेल्स पर हमला होता है जिसके कारण मांसपेशियों से संवाद और स्वैच्छिक गतिविधियों पर नियंत्रण खत्म हो जाता है। ऐसा होने से पूरा शरीर लकवाग्रस्त हो जाता है।
शुरुआत में मांसपेशियां अकड़ने और कमजोर होने लगती हैं। इसके बाद धीरे धीरे पीड़ित व्यक्ति चलने-फिरने, बोलने और यहां तक की सांस लेने की क्षमता भी खोते रहता है।
लाख में से दो लोगों को
किसी भी बीमारी में ये स्थिति बहुत दुलर्भ होती है। हर साल एक लाख में दो लोग इस बीमारी की चपेट में आते हैं। ज्यादातर ऐसे लोगों की उम्र 55 से 65 साल के बीच होती है।
आइस बकेट चैलेंज से चर्चा में आई थी ये बीमारी
2014 में इस बीमारी का नाम तब काफी चर्चा में आया जब “आइस बकेट चैलेंज” वायरल हुआ। इसमें लोग अपने सिर पर ठंडा पानी डाल कर वीडियो अपलोड कर रहे थे। इसका मकसद इस बीमारी के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाना था।
कोई इलाज नहीं है
फिलहाल एएलएस एक लाइलाज बीमारी है। इसका कोई उपचार नहीं है। हालांकि इसके लक्षणों को कुछ हद तक नियंत्रित करने के कुछ विकल्प जरूर मौजूद हैं।
एएलएस एसोसिएशन के मुताबिक इस बीमार से ग्रसित होने के बाद बचने का समय औसतन तीन साल है। केवल पांच फीसदी मरीज ही 20 साल या उससे ज्यादा जी पाते हैं।
हाकिंग हैं एक दुर्लभ अपवाद
शोधकर्ताओं का कहना है कि हाकिंग का इस बीमार के साथ 55 साल तक जीवित रहना एक दुर्लभ अपवाद है और यह हमेशा एक बड़ा रहस्य बना रहेगा। हालांकि कुछ का ये भी मानना है कि बीमारी का बढ़ना अलग-अलग मरीज में अलग-अलग हो सकता है। ये जेनेटिक्स से नियंत्रित हो सकते हैं।
इस बीमारी को लोउ गेहरिग भी कहते हैं
अमेरिका में इस बीमारी को लोउ गेहरिग बीमारी के नाम से भी जाना जाता है। लोउ गेहरिग एक महान बॉस्केटबॉल खिलाड़ी थे जिनकी 1941 में इसी रोग ने जान ले ली थी।