नीम में हजार गुण हों, मगर उसे उसकी कड़वाहट के लिए जाना जाता है। वैसे नीम हमेशा से कड़वा नहीं था, वह एक श्राप के कारण ऐसा हो गया। इसकी कहानी बहुत पुरानी है। तब नीम बहुत मीठा हुआ करता था, और उसके ऊपर चिडि़या, परिंदों का बसेरा था और उसकी छांव में बच्चे खेलते थे व पथिक सुस्ता भी लिया करते थे। उन दिनों नीम की मिठास आम की तरह हुआ करती थी। दोनों पेड़ों के गुणों में न के बराबर फर्क था।
मगर नीम इस बात से खुश नहीं था। उसके पास जब बच्चे खेलने के लिए आते, तो उसे गुस्सा आने लगता। चिडि़या जब उसकी डालियों पर बैठकर शोर मचातीं, तो उसके कान फटने लगते थे। रोज-रोज जब वह यह शोर सुनते सुनते थक गया, तो उसने सबको सबक सिखाने की योजना बनाई। रोज की तरह जब एक दिन सुबह पक्षी उसकी डाल पर आकर बैठने लगे, तो वह खूब जोर-जोर से हिलने लगा, जैसे भूकंप आ गया हो। इससे सभी पक्षी डर कर भाग गए। स्कूल से लौटने के बाद बच्चे जब उसकी छांव में खेलने के लिए आए नीम ने अपनी टहनियां इतनी नीचे कर दीं कि बच्चों को परेशानी होने लगी और वह वहां से भाग गए।
कई दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। धीरे-धीरे बच्चों, पशु-पक्षियों, रहगीरों ने नीम की जगह आम के पेड़ के नीचे और उसकी टहनियों को अपना ठिकाना बना लिया। आम इससे बहुत खुश था। मगर नीम मन ही मन अपनी इस चालाकी से उत्साहित हो रहा था। नीम की यह चालाकी जल्द ही सभी पशु-पक्षियों और प्रकृति से छुपी नहीं रह सकी। सबने मिलकर इसकी शिकायत प्रकृति से की और उसने नीम को सजा देने का फैसला किया।
प्रकृति नीम को श्राप दिया कि अब वह हमेशा के लिए कड़वा हो जाएगा, उसके फल पर भी इसका असर होगा। यह सुनकर नीम को बहुत पछतावा हुआ और वह माफी मांगने लगा। वह रो-रोकर गिड़गिड़ाने लगा। इस पर पशु-पक्षियों को उस पर तरस आ गया और उन्होंने प्रकृति से उसे माफ करने की अपील की। प्रकृति ने कहा कि वह उसका श्राप तो खत्म नहीं कर सकती है, मगर उसे कुछ गुण जरूर दे सकती है, जिससे भविष्य में उसकी उपयोगिता लोगों के लिए बनी रहे।
नीम को अब समझ में आया कि जिन चीजों के लिए वह नाराज हो रहा था, असल में वही उसकी संपत्ति थी। अपने गुणों पर कभी इतना नहीं इतराना चाहिए कि दूसरों की भावनाएं आहत हो जाएं। निःस्वार्थ प्रेम को विनम्रता से स्वीकार करना चाहिए। रूखा व्यवहार हमें सदा के लिए अकेला कर सकता है।