लड़ाकू विमान राफेल डील पर शुक्रवार को लोकसभा में कांग्रेस और बीजेपी के बीच जमकर तकरार हुई। संसद में मानसून सत्र के तीसरे दिन अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल डील का मुद्दा उठाया। उन्होंने राफेल मामले में पर रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण पर देश को गुमराह करने का आरोप लगाया। पीएम मोदी और निर्मला सीतारमण ने राहुल के आरोपों का खंडन किया है।
बता दें कि वायुसेना को अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों से लैस करने के लिए फ्रांस के साथ हुए राफेल सौदे की लेखा परीक्षा ‘महा लेखा नियंत्रक एवं परीक्षक (कैग)’ करने जा रहा है। राफेल सौदे को लेकर विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर रहा है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का आरोप है कि वर्तमान सरकार ने राफेल विमानों के लिए यूपीए कार्यकाल में तय कीमत से कहीं ज्यादा दाम चुकाएं हैं।
जानिए क्या है राफेल सौदा
1. वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच राफेल सौदे को लेकर अंतिम समझौता हुआ था। निर्मला सीतारमण के बयान के अनुसार, अंतिम करार पर सितंबर 2016 में दस्तखत किए गए थे। इससे पहले भारत और फ्रांस के बीच पांच दौर की लंबी चर्चा हुई और इसे सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने भी मंजूरी दी थी।
2. मोदी सरकार का दावा है कि यह सौदा उसने यूपीए से कम कीमत में किया है और 12,600 करोड़ रुपये बचाए हैं।
3. मोदी सरकार ने गोपनीयता समझौते का हवाला देते हुए 36 विमानों के लिए हुए सौदे की लागत का पूरा विवरण जारी नहीं किया।
4. सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि 36 विमानों की खरीद के सौदे में कोई भी भारतीय आफसैट साझीदार नहीं चुना गया है और विक्रेता अपना भागीदार चुनने के लिए स्वतंत्र है। यूपीए सरकार ने जो सौदा किया था उसमें प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का प्रावधान नहीं था।
5. कांग्रेस का कहना है कि यूपीए 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपये दे रही थी, जबकि मोदी सरकार सिर्फ 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ दे रही है। इस तरह अब एक विमान की लागत 1555 करोड़ रुपये पड़ रही है, जबकि यूपीए सरकार इन्हें 428 करोड़ रुपये प्रति विमान की दर पर खरीद रही थी।
6. 2011 में भारतीय वायुसेना ने घोषणा की कि राफेल और यूरोफाइटर टाइफून उसके मानदंड पर खरे उतरे हैं। कई विमानों के तकनीकी परीक्षण और मूल्यांकन के बाद यह घोषणा हुई।
7. 2012 में राफेल को एल-1 बिडर घोषित किया गया और इसके निर्माता दसाल्ट एविएशन के साथ बातचीत शुरू हुई।
8. 2014 तक यह बातचीत आरएफपी अनुपालन और लागत संबंधी कई मसलों की वजह से अधूरी रही।
9. यूपीए सरकार के दौरान इस पर समझौता नहीं हो पाया, क्योंकि खासकर टेक्नोलॉजी स्थानांतरण के मामले में दोनों पक्षों में गतिरोध बन गया था। निर्माता कंपनी दसाल्ट एविएशन भारत में बनने वाले 108 विमानों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थी। दसाल्ट का कहना था कि भारत में विमानों के उत्पादन के लिए तीन करोड़ मानव घंटों की जरूरत होगी, लेकिन एचएएल ने इसके तीन गुना ज्यादा मानव घंटों की जरूरत बताई, जिसके कारण लागत कई गुना बढ़ जानी थी।
10. इसससे पहले बजट सत्र 2021 के दौरान लोकसभा में अरुण जेटली ने कह चुके हैं कि हथियारों की डील से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करना राष्ट्रहित में नहीं है। डील की कीमत बताने की मांग करके विपक्ष भारत की सुरक्षा के साथ समझौता कर रहा है।