शुक्रवार को होने जा रहा अविश्वास प्रस्ताव रोमांच से भरा हुआ है जिसे फिल्म की तरह पेश करते हैं। एक तरफ जहां इसका परिणाम हर किसी को पहले से मालूम हैं, ऐसे में कोई भी इसे आखिर तक इसलिए नहीं देखेगा कि इसका नतीजा क्या निकलता है बल्कि इसलिए देखेगा कि क्या हो रहा है।
इस ड्रामा में, तीन मुख्य किरदार है, जिनमें से दो मौजूद रहेंगे जबकि एक अनुपस्थित रहेगा। एक तरफ जहां इन तीनों के एक्शन से उसका स्वरूप तय होगा तो वहीं कुछ अन्य लोगों की भी मंच पर मौजूदगी रहेगी। इसके ऑडियंस आम से लेकर खास तक सभी रहेंगे और इसके सभी एक्टर यह उम्मीद कर रहे होंगे कि उनकी भूमिका उनके अपने टारगेट ऑडियंस को खुश करे।
टीडीपी
पहले किरदरार के बारे में शायद ही कोई ऐसा हो जो ना जानता हो। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू एक बड़े राजनेता हैं। केन्द्र की तरफ से आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने से इनकार के बाद उनकी तरफ से लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है।
इससे ऐसा लगता है कि यह क्षेत्रीय मुद्दा है, लेकिन पिछले करीब डेढ़ दशक में आंध्र प्रदेश राष्ट्रीय राजनीति की धूरी में रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि साल 2004 में कांग्रेस ने वहां पर शानदार प्रदर्शन किया था और दिल्ली में बीजेपी की सत्ता को यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलाइंस के जरिए उखाड़ फेंकने में कामयाब हुई थी। उसने साल 2009 में भी वहां पर बेहतर प्रदर्शन किया था, जिसके बाद दिल्ली में वह ज्यादा डोमिनेंट पार्टनर के तौर पर उभरी थी।
हालांकि, बेहतर प्रबंधन नहीं करने के चलते कांग्रेस साल 2014 के चुनाव में हार गई। बीजेपी को वहां कोई फायदा नहीं मिला। उसने नायडू के साथ गठबंधन किया और केन्द्र और राज्य दोनों जगहों पर उनकी जीत हुई। आंध्र की अंदरूनी राजनीति लगातार राष्ट्रीय पटल पर सुर्खियों में रही है।
राहुल गांधी
अगर यह नायडू तक ही सीमित रहता तो उसका दायरा भी सीमित होगा। लेकिन, वह राहुल गांधी है जिन्होंने मौके की परिस्थिति को भांपते हुए इसे राष्ट्रीय रंग दिया। कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग और अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन दो वजहों से किया है।
इसका पहला कारण है आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की विश्वसनीयता को मबजूत करने के लिए क्योंकि वहां के लोग कांग्रेस पर राज्य के विभाजन का आरोप लगा रहे हैं। इसके साथ ही संभावित क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ विश्वास बहाली को बढ़ाना। शुक्रवार को राहुल गांधी का भाषण उनके कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद काफी महत्वपूर्ण रहेगा। उनके इस संबोधन से पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा हो सकता है। कर्नाटक चुनाव के वक्त रैली विशेष मतदाता के लिए था।
पीएम मोदी
लेकिन, राजनीतिक गतिरोधों के बीच सभी की निगाहें तीसरे एक्टर पर खास बनी रहेगी और वो है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। जिस वक्त स्टोरी की क्लाइमेक्स का अंत उनके पक्ष में होगा, उसके बाद यह आकलन लगाना आसान है कि प्रधानमंत्री अपनी उपलब्धियां गिनवाएंगे। यहां पर यह याद रखने की जरूरत है कि ना ही बीजेपी एक पार्टी के तौर पर और ना ही मोदी एक नेता के तौर पर किसी भी अवसर को अपनी मजबूती गिनाने में और विपक्षियों को कमजोर बताने का मौका छोड़ते है। 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने एक सांसद से कहा था- चुनाव जंग है और मैं इसका सेनापति।
ऐसे में शुक्रवार की यह लड़ाई भी मोदी की होगी। उनकी सरकार ने पहले ही दिन मानसून सत्र शुरू होते ही अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार कर सभी को हैरान कर दिया था। इसका यह मतलब भी है कि मोदी इसमें मुख्य भूमिका में हैं जो प्ले की टाइमिंग का फैसला करते हैं और अन्य उसके हिसाब से चलते हैं। उनकी दस्ते की तरफ से यह पहले ही कहा जा चुकी है कि ज्यादातर प्रभावी एक्टर उनके साथ है, ऐसे में चिंता की कोई बात नहीं है।