सुप्रीम कोर्ट ने औद्योगिक इकाइयों में पेटकोक के इस्तेमाल से संबंधित मामले में नाराजगी के साथ टिप्पणी की कि क्या पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय खुद को भगवान या सुपर सरकार मानता है।
जस्टिस मदन बी लोकूर की पीठ ने यह तीखी टिप्पणी उस वक्त की जब शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि इस मंत्रालय ने रविवार को ही पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पेटकोक के आयात पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे से अवगत कराया है। यह कोक औद्योगिक ईंधन के रूप में इस्तेमाल होता है।
शीर्ष अदालत ने इस रवैये पर कड़ा रूख अपनाते हुए पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय पर इस लापरवाही के लिए 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। कोर्ट दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण की समस्या को लेकर पर्यावरणविद् अधिवक्ता महेश चंद्र मेहता द्वारा 1985 में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था। शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार पर भी एक लाख रुपये का जुर्माना किया क्योंकि उसने राजधानी में अनेक मार्गों पर यातायात अवरूद्ध होने की समस्या को दूर करने के लिए कोई समयबद्ध स्थिति रिपोर्ट पेश नहीं की। पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार इन आदेशों के प्रति गंभीर नहीं है।
पीठ ने अतिरिक्त सालिसीटर जनरल एएनएस नाडकर्णी को दिन में हलफनामा दाखिल करने की अनुमति देते हुए कहा, हम पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को जवाब भेजने के लिए अपने हिसाब से वक्त लगाने के पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के रवैये से आश्चर्यचकित हैं। यह विलंब सिर्फ पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की सुस्ती के कारण हुआ है। न्यायालय इस मामले में अब 16 जुलाई को आगे सुनवाई करेगा।