Film Review: न रोमांच न मजा, बेहद औसत फिल्म है

Film Review: न रोमांच न मजा, बेहद औसत फिल्म है

पिछले कुछ सालों में भारत के एक बड़े दर्शकवर्ग का एनिमेशन फिल्मों के प्रति चाव बढ़ा है। उनके सामने ‘कोको’ और ‘दि बॉस बेबी’ जैसी ऐसी कई फिल्में आईं जिन्हें देखकर उन्हें उतना ही मजा आया जितना किसी बच्चे को। सर्वश्रेष्ठ एनिमेटेड फिल्म का पुरस्कार पाने वाली फिल्म ‘कोको’ का संगीत किसी मायने में कम नहीं था। भारत में भी ऐसी कोशिशें लगातार हो रही हैं।
पिछले साल रिलीज मजेदार संवादों वाली फिल्म ‘हनुमान द दमदार’ में हमने सलमान खान और सन्नी देओल जैसे सितारों की आवाजें भी सुनीं। इस हफ्ते रिलीज फिल्म ‘हनुमान वर्सेज महिरावण’ भी इसी फेहरिस्त में शामिल हो सकती थी, अगर उसके तकनीकी पहलू और पटकथा बेहतर होती। पर अपने मौजूदा रूप में यह फिल्म महज एक कार्टून टीवी शो जैसी बन कर रह गई है। बल्कि आजकल टीवी शोज में भी इससे ज्यादा रचनात्मकता नजर आने लगी है।
हनुमान रामायण का एक ऐसा किरदार हैं, जो एनिमेशन फिल्मकारों को काफी लुभाता रहा है। हर निर्देशक उन्हें एक अलग नजर से देखता है। शायद यही वजह है कि अब तक हनुमान (2005), रिटर्न ऑफ हनुमान (2007), हनुमान द दमदार (2017) और (अब) ‘हनुमान वर्सेज महिरावण’ जैसी फिल्में हमारे सामने आई हैं। हर फिल्म में हमने हनुमान के व्यतित्व का एक अलग रंग देखा। हालांकि इस दफा विभिन्न कारणों के चलते यह रंग उतना चोखा नहीं चढ़ पाया।
यह फिल्म रामायण के एक ऐसे किस्से पर बनी है, जो रोचक और काफी हद तक अनछुआ भी है। यह किस्सा राम-रावण युद्ध की आखिरी दो रातों से जुड़ा हुआ है। रावण, राम से परास्त होकर जमीन पर पड़ा होता है जिसे देखकर लक्ष्मण, राम से उसे मारने के लिए कहते हैं। पर राम यह कहकर रावण को जाने देते हैं कि वह थका हुआ और शस्त्र विहीन है। ऐसे में उसे मारना युद्धनीति के खिलाफ है। राम कहते हैं कि वह अगले दिन वह निश्चित ही रावण को मारकर युद्ध खत्म कर देंगे। उधर रावण अपने सौतेले भाई महिरावण से मदद की गुहार लगाता है। महिरावण एक मायावी राक्षस है, जो पाताललोक में रहता है। वह धोखे से राम-लक्ष्मण को अगवा करके ले जाता है। दरअसल महिरावण अपनी अराध्य देवी महामाया के चरणों में राम-लक्ष्मण की बलि देना चाहता है। ऐसे में तारणहार बन कर आते हैं पवनपुत्र हनुमान। आगे हनुमान किस तरह राम-लक्ष्मण को बचाते हैं और महिरावण को धूल चटाते हैं, यही है इस फिल्म की कहानी।
पहली बात, फिल्म में चौंकाने वाले मौके बहुत कम आते हैं। कहानी एक सीधी-सपाट दिशा में चलती रहती है। दूसरी बात, फिल्म के संवाद रोचक नहीं है। फिल्म से हास्य लगभग नदारद है, जो इसके मनोरंजक होने में सबसे बड़ा बाधक है। अब आते हैं तकनीकी पहलुओं पर, जो कि इसकी सबसे कमजोर कड़ी हैं। माना कि बजट की सीमाओं के चलते हमारे यहां की एनिमेशन फिल्मों की, हॉलीवुड एनिमेशन फिल्मों से तुलना बेमानी है, पर इस फिल्म में तो किरदारों की ‘लिप सिंक’ जैसी सामान्य चीज भी गड़बड़ाई हुई है। संवादों और किरदारों के होठों की हरकत के बीच कोई सामंजस्य ही नहीं है। रंगों का इस्तेमाल भी कुछ ज्यादा भड़कीला है। एक गहरी सुरंग में गिरने जैसे जिन दृश्यों को थ्री डी स्क्रीन में देखने पर रोमांच का एहसास होना चाहिए था, वह गायब है। फिल्म में कुछ गाने हैं, जो इसकी गति में बाधक ही साबित होते हैं। वॉइस आर्टिस्ट्स का काम प्रभावी है। राम, सीता और महिरावण के किरदारों के लुक की परिकल्पना अच्छी की गई है।
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