तुर्की के राष्ट्रपति रोसेप तैय्यप एर्दोगन रविवार को हुए चुनाव में पूर्ण बहुमत से जीत हासिल की। इसके साथ ही वे दूसरी बार तुर्की के राष्ट्रपति बनेंगे। एर्दोगन को अब तक हुई 97.7 फीसदी मतगणना में 52.54 फीसदी वोट मिले। जबकि विपक्षी पार्टी रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी (सीएचपी) के उम्मीदवार मुहर्रम इंजे को 30.68 फीसदी वोट मिले। इसके अलावा तुर्की में प्रधानमंत्री पद खत्म कर दिया गया है। राष्ट्रपति ही अब कैबिनेट की नियुक्ति करेगा।
मतगणना को लेकर विपक्ष शिकायत कर रहा है लेकिन इसके साथ ही सत्ता पर एर्दोगन की पकड़ मजबूत हो गई है। गौरतलब है कि 15 वर्ष से वे ही सत्ता पर काबिज हैं। एर्दोगन 2014 में तुर्की का राष्ट्रपति बनने से पहले 11 साल तक तुर्की के प्रधानमंत्री थे। अप्रैल 2017 में हुए जनमत संग्रह में नए संविधान पर सहमति बनी थी। इस्तांबुल के अपने आवास से विजयी संदेश में एर्दोगन ने कहा कि मुझ पर देश ने भरोसा जताते हुए राष्ट्रपति पद का कार्य और कर्तव्य सौंपे हैं। उन्होंने कहा कि नई राष्ट्रपति प्रणाली को तेजी से लागू किया जाएगा। उन्होंने कहा कि 88 फीसदी मतदान कर तुर्की के लोगों ने पूरी दुनिया को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाया है। वही विपक्षी पार्टी ने कहा कि नतीजे कुछ भी रहें, वे लोकतंत्र के लिए लड़ाई लड़ते रहेंगे।
और ज्यादा शक्तिशाली हुए
तुर्की में पहली बार राष्ट्रपति शासन प्रणाली लागू की गई है जिसमें एर्दोगन के पास पहले से कहीं ज्यादा शक्तियां होंगी।
प्रधानमंत्री पद खत्म : तुर्की में प्रधानमंत्री पद खत्म कर दिया गया है। राष्ट्रपति ही अब कैबिनेट की नियुक्ति करेगा।
राष्ट्रपति का शिकंजा : सरकारी और निजी संस्थाओं पर नजर रखने वाली संस्था स्टेट सुपरवाइजरी बोर्ड को प्रशासनिक जांच शुरू करने का अधिकार होगा। यह बोर्ड राष्ट्रपति के अधीन है। ऐसे में, सैन्य बलों समेत बहुत सारे समूह सीधे तौर पर राष्ट्रपति के अधीन होंगे।
लोकतंत्र कमजोर होगा
आलोचकों का कहना है कि राष्ट्रपति के पास इतनी शक्तियां आने से तुर्की में लोकतंत्र कमजोर होगा। आलोचकों का कहना है कि कानूनी संहिता में स्पष्टता की कमी है साथ ही देश की न्यायपालिका में निष्पक्षता की कमी झलकती है।