साल 2017 में तमिलनाडू, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, पंजाब और तेलांगाना समेत कई राज्यों के सैकड़ों किसान दिल्ली में पहुंचे थे। वहीं एक बार फिर से महाराष्ट्र के किसान अपना पेट भरने के लिए सड़क पर उतरे हैं। यहां के करीब 40 हजार किसान 200 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके मुंबई पहुंचे हैं।
आंकड़ों पर जाएं तो देश में 9 करोड़ किसान परिवार हैं जिसमें 6.3 करोड़ परिवार कर्ज में डूबा हुआ है। जिसकी वजह से साल 1995 के बाद अभी तक लगभग 4 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इन सबमें महाराष्ट्र से केवल 76 हजार किसान खुदकुशी कर चुके हैं। बता दें कि खेती से जुड़ी सबसे ज्यादा समस्याएं इसी राज्य में है क्योंकि यहां पानी की कमी है।
महाराष्ट्र के अलावा आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तरुप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों में किसान आत्महत्या कर चुके हैं।
वहीं एक रिपोर्ट के मुताबिक कर्ज के बोझ से किसानों के आत्महत्या करने की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2005 से 2015 के बीच 10 साल के आंकड़ो के मुताबिक देश में हर एक लाख की आबादी पर 1.4 और 1.8 किसान खुदखुशी कर रहे हैं।
क्या है किसानों की मांगे…
– बिना किसी शर्त के सभी किसानों का कर्ज माफ कर दिया जाए।
– सरकार कृषि उत्पाद को डेढ़ गुना दाम देने का वादा करे।
– महाराष्ट्र के किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराए।
– ओलावृष्टि प्रभावित किसानों को प्रति एकड़ 40 हजार रु. का मुआवजा दिया जाना चाहिए।
– किसानों का बिजली बिल भी माफ किया जाए।
– स्वामिनाथन आयोग की सिफारिशों व वनाधिकार कानून पर अमल किया जाए।
क्या है पूरा मसला…
जानकारों की मानें तो किसानों के कर्ज़ माफी के संबंध में जो सरकार ने आंकड़े पेश किए हैं उन्हें बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया है। इसके अलावा किसान जिन जिला स्तर के बैंकों से कर्ज की आस लगाती ज्यादातर उन बैंकों की हालत खराब है। इस तरह अब तक किसानों को लोन देने का काम दस फीसद भी अभी नहीं हो पाया है।
कर्ज माफी की इंटरनेट भी है मुश्किल…
जानकारों के मुताबिक कि किसानों की कर्ज़ माफी की प्रक्रिया इंटरनेट के जरिए की जा रही है, लेकिन ज्यादातर किसान डिजिटल नहीं जानते हैं। ऐसे में इसका फायदा उठान में उन्हें परेशानी हो रही है। वहीं किसानों का आरोप है कि सरकार लोन देने के आंकड़ों को गलत पेश कर रही है। इसकी कोई जांच भी नहीं हुई है। किसान जब पंजीकरण केंद्र पहुंचता है तो उनका नाम लाभार्थियों की सूची में शामिल ही नहीं होता है।
क्या उचित समर्थन मूल्य (MSP) देने से हो जाएगा हल ?
केंद्र सरकार ने बजट में उचित समर्थन मूल्य देने की बात जरूर कही गई थी, लेकिन असल में देखा जाए तो क्या किसानों की समस्या का समाधान उन्हें उचित समर्थन मूल्य देने से हो जाएगा? इस पूरे मामले एक एक्सपर्ट के मुताबिक, सिर्फ न्यूनतम समर्थन मूल्य दे देना काफी नहीं होगा। उन्हें मदद चाहिए। बदलते मौसम के साथ-साथ राज्य सरकार के फ़ैसलों की मार किसानों पर पड़ रही है। किसानों की मांग है कि उन्हें स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों के मुताबिक खेती में होने वाले खर्चे के साथ-साथ उसका 50 फीसदी और दाम समर्थन मूल्य के तौर पर मिलना चाहिए।