जोकीहाट उपचुनाव से बिहार के राजनीतिक तामपान में तात्कालिक रूप से जो गर्मी दिख रही हो, पर यह परिणाम करीब-करीब प्रत्याशित था। सिर्फ हार-जीत के अंतर को लेकर लोगों में उत्सुकता थी। बदले राजनीतिक गठबंधन में इसकी गांठों की भी पड़ताल इस बहाने होनी थी। परिणाम के बाद जहां विपक्ष का मनोबल ऊंचा हुआ है वहीं एनडीए खेमे की ओर से महज यह एक उपचुनाव था, जैसी प्रतिक्रिया आ रही है। वैसे एक बात साफ हुई कि इस इलाके में तस्लीमुद्दीन का जादू बरकरार है। जदयू की जीत का क्रम यहां टूट गया। भाजपा के साथ आने के बाद जहानाबाद के बाद यह दूसरा उपचुनाव है, जहां जदयू अपनी सीट बचा नहीं पाया।
जोकीहाट उपचुनाव जदयू के पूर्व विधायक सरफराज आलम के इस्तीफे की वजह से हुआ था। सरफराज अपने पिता तस्लीमुद्दीन के निधन से खाली हुई अररिया लोकसभा सीट से बतौर राजद प्रत्याशी मैदान में उतरे और उन्होंने पिता की विरासत को संभालते हुए जीत पाई। भाजपा प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह को करीब 62 हजार से उन्होंने मात दी थी।
वर्ष 2014 के आम चुनाव में भी प्रदीप ही मरहूम मो. तस्लीमुद्दीन के सामने थे। तब प्रदीप सिंह ने 2.61 लाख, जबकि तस्लीमुद्दीन को 4.07 लाख वोट मिले थे। यह वोट प्रतिशत क्रमश: 26.8 और 41.8 प्रतिशत था। तब राजद ने महागठबंधन में चुनाव लड़ा था और जदयू भी उसके साथ था। 2021 लोकसभा उपचुनाव में जब जदयू भाजपा के साथ गया तो दोनों पक्षों के वोट बढ़े। एनडीए प्रत्याशी को 43.19 फीसदी, जबकि राजद के सरफराज को 49.15 फीसदी वोट मिले थे।
जोकीहाट विधानसभा सीट से 2015 में बतौर जदयू प्रत्याशी सरफराज आलम ने करीब 54 हजार वोट से जीत दर्ज की थी। तब एनडीए की ओर से हम की जेबा खातून मैदान में थीं और उन्हें महज 4206 वोट मिले थे। निर्दलीय रंजीत यादव को 38 हजार 910 वोट आया था। मौजूदा उपचुनाव में सरफराज के अनुज शाहनवाज आलम ने 81 हजार 240 (56.7) जबकि जदयू प्रत्याशी मुर्शीद आलम ने 40 हजार 16 (28 फीसदी) वोट पाया। उम्मीद की जा रही है कि जदयू-भाजपा इस हार के बाद गठबंधन की गांठों को और मजबूत करने पर जोर देंगे।