तमिलनाडु के तूतीकोरिन में वेदांता की स्टरलाइट कॉपर इकाई पर छिड़ा बवाल बेवजह नहीं है। 2008 नें तिरुनेलवेली मेडिकल कॉलेज की ओर से जारी ‘हेल्थ स्टेटस एंड एपिडेमियोलॉजिकल स्टडी अराउंड 5 किलोमीटर रेडियस ऑफ स्टरलाइट इंडस्ट्रीज (इंडिया) लिमिटेड’ रिपोर्ट में इस कॉपर इकाई को क्षेत्र के बाशिंदों में सांस की बीमारियों के बढ़ते मामलों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था।
अध्ययन
-80 हजार से अधिक गांववाले तिरुनेलवेली मेडिकल कॉलेज के शोध में शामिल हुए थे
-5 किलोमीटर, स्टरलाइट इंडस्ट्रीज के दायरे में बसे ग्रामीणों के स्वास्थ्य की जांच की गई
-2 गैर-औद्योगिक क्षेत्रों और राज्य के औसत स्वास्थ्य हालत से तुलनात्मक अध्ययन किया
आफत
-तूतीकोरिन स्थित कुमारेदियापुरम और थेरकु वीरपनदीयापुरम के भूमिगत जल में आयरन की मात्रा तय सरकारी मानक से 17 से 20 गुना ज्यादा पाई गई। बाशिंदों में कमजोरी और पेट-जोड़ों में दर्द का मुख्य कारण थी।
-स्टरलाइट के आसपास के इलाकों में पूरे राज्य और गैर-औद्योगिक क्षेत्रों के मुकाबले 13.9 फीसदी अधिक दर्ज की गई श्वास रोगों के शिकार लोगों की संख्या। अस्थमा-ब्रॉन्काइटिस के मरीज राज्य औसत से दोगुने मिले।
-‘साइनस’ और ‘फैरिनगाइटिस’ सहित आंख, नाक व गले के अन्य रोगों से जूझ रहे लोगों की संख्या भी काफी अधिक पाई गई। इसके अलावा क्षेत्र में मासिक धर्म से जुड़ी समस्याएं झेलने वाली महिलाएं भी बड़ी तादाद में मिलीं।
आशंका
-70 हजार से 1.70 लाख टन सालाना कॉपर उत्पादन की क्षमता थी स्टरलाइट इकाई की अध्ययन के दौरान
-3 से 4 लाख टन प्रति वर्ष के बीच कॉपर तैयार हो रहा मौजूदा समय में, सेहत पर ज्यादा कहर बरपने का अंदेशा