कर्नाटक चुनाव के परिणाम के बाद रोचक हालात बन गए हैं, क्योंकि किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला है। भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है,पर उसके विरोधी कांग्रेस और जेडीएस ने तुरंत साथ आकर चुनाव बाद गठबंधन की घोषणा कर डाली। दोनों ही पक्षों ने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया है, अब राज्यपाल को फैसला लेना है। .
भाजपा जहां इस चुनाव को अपने लिए जनादेश मान रही है,वहीं कांग्रेस और जेडीएस ने कम सीटें प्राप्त की हैं। इसलिए सबसे बड़ी पार्टी होने KE नाते भाजपा चाहती है कि उसे सरकार बनाने का न्योता मिले। वहीं कांग्रेस और जेडीएस का दावा है कि वे गठबंधन में ज्यादा स्थायी हैं, क्योंकि उनके पास सरकार गठन के लिए पर्याप्त संख्या है। .
अब गेंद राज्यपाल के पाले में है। संविधान के विशेषज्ञों की मानें तो राज्यपाल उस पार्टी को आमंत्रित कर सकते हैं जो उनकी नजर में सदन में बहुमत साबित करने में सक्षम हो। कांग्रेस-जेडीएस के मामले में लगता है कि यह उनके लिए अनुकूल होगा। पर भाजपा मानती है कि उसे आमंत्रित किया जाना चाहिए क्योंकि वह सबसे बड़ी पार्टी है और विरोधी दलों का चुनाव पूर्व कोई गठबंधन नहीं था। राज्यपाल वजुभाई वाला को अब कानूनी और संवैधानिक पक्ष का ध्यान रखते हुए इस मुद्दे को सुलझाना है।.
साफ तौर पर कांग्रेस को इस चुनाव में हार मिली है, लेकिन भाजपा के लिए भी यह शानदार जीत नहीं है। वहीं जेडीएस के लिए एक शानदार संभावना है जब उसके नेता एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बन सकते हैं। क्रिकेट की भाषा में हम कह सकते हैं कि मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने फ्रंट फुट पर खेला और चुनावी एजेंडा तय करके भाजपा को जोशीली चुनौती दी। वहीं भाजपा की ओर से प्रमुख प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आखिरी के ओवरों में बड़ा स्कोर खड़ा किया। .
ये परिणाम 2019 के आम चुनाव पर भी प्रभाव डालेंगे। मौके का लाभ उठाते हुए तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने देवेगौड़ा को कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की सलाह दे डाली। इसी तरह की सलाह तीसरे मोर्चे के गठन में सक्रिय नेताओं की ओर से भी आई जो महसूस करते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को बहुमत नहीं मिलने पर और कांग्रेस के कमजोर होने पर वे आगे बढ़कर विपक्ष को नेतृत्व प्रदान कर सकते हैं।.