कार्ल मार्क्स एक जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री और वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता थे। कार्ल मार्क्स के विचार देश की सत्ता में महिलाओं और सर्वहारा वर्ग की हिस्सेदारी, पिछड़ों के अधिकारों का सम्मान और साथ लेकर चलने के इर्द-गिर्द घूमते हैं। इनके विचारों और समाजवाद को अपनाने और उनपर चलने वाले दुनिया के हर हिस्से में मौजूद हैं। भारत जैसे बड़े लोकतंत्र जहां गरीबी से निपटना एक बड़ी समस्या है, ऐसे देश में कार्ल मार्क की प्रासंगिकता बहुत है।
मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 में को त्रेवेस (प्रशा) के एक यहूदी परिवार में हुआ। 17 वर्ष की अवस्था में मार्क्स ने कानून का अध्ययन करने के लिए बॉन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। उसके बाद उन्होंने बर्लिन और जेना विश्वविद्यालयों में साहित्य, इतिहास और दर्शन का अध्ययन किया। 1839-41 में उन्होंने दिमॉक्रितस और एपीक्यूरस के प्राकृतिक दर्शन पर शोध-प्रबंध लिखकर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। आइए आज उनके 5 महत्वपूर्ण विचारों के बारे में जानते हैं।
1. इतिहास खुद को दोहराता है, पहली बार एक त्रासदी की तरह और दूसरी बार एक मज़ाक की तरह।
2. कोई भी जो इतिहास की कुछ जानकारी रखता है वो ये जानता है कि महान सामाजिक बदलाव बिना महिलाओं के उत्थान के असंभव हैं। सामाजिक प्रगति महिलाओं की सामाजिक स्थिति, जिसमें बुरी दिखने वाली महिलाएं भी शामिल हैं; को देखकर मापी जा सकती है।
3. लोकतंत्र समाजवाद का रास्ता है।
4. अगर कोई चीज निश्चित है तो ये कि मैं खुद एक मार्क्सवादी नहीं हूं।
5. दुनिया के मजदूरों एकजुट हो जाओ, तुम्हारे पास खोने को कुछ भी नहीं है, सिवाय अपनी जंजीरों के।