AAP के 20 विधायकों पर फैसला आज, राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजेगा EC

AAP के 20 विधायकों पर फैसला आज, राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजेगा EC

दिल्ली की आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की आयोग्यता मामले में चुनाव आयोग का फैसला आज सकता है। फिलहाल चुनाव आयोग की बैठक चल रही है। बैठक के बाद इस रिपोर्ट को राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा।

इन विधायकों को संसदीय सचिव बनाए जाने के बाद से ही इनकी सदस्यता पर खतरा मंडरा रहा है। मुख्य चुनाव आयुक्त एके ज्योति अपने रिटायरमेंट से पहले सारे पेंडिंग केस को खत्म करना चाह रहे हैं, इसलिए आयोग फटाफट पुराने मामलों का निपटारा कर रहा है। वह 22 को रिटायर हो जाएंगे।

बता दें कि केजरीवाल सरकार ने अपने मंत्रियों के लिए विधायकों को ही संसदीय सचिव के पद पर तैनात किया था। ‘लाभ के पद’ का हवाला देकर इस मामले में सदस्यों की सदस्यता भंग करने की याचिका डाली गई थी। हालांकि, पार्टी इसे बार-बार राजनीति से प्रेरित मामला बताती रही। पार्टी को लाभ के पद मामले में चुनाव आयोग से पहले भी झटका लगा था। चुनाव आयोग ने 21 विधायकों की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने केस को रद करने की मांग की थी।

ये है पूरा मामला
आम आदमी पार्टी ने 13 मार्च 2015 को अपने 20 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था। इसके बाद 19 जून को एडवोकेट प्रशांत पटेल ने राष्ट्रपति के पास इन सचिवों की सदस्यता रद्द करने के लिए आवेदन किया। राष्ट्रपति की ओर से 22 जून को यह शिकायत चुनाव आयोग में भेज दी गई। शिकायत में कहा गया था कि यह ‘लाभ का पद’ है इसलिए आप विधायकों की सदस्यता रद्द की जानी चाहिए।

इससे पहले मई 2015 में इलेक्शन कमीशन के पास एक जनहित याचिका भी डाली गई थी। आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि विधायकों को संसदीय सचिव बनकर कोई ‘आर्थिक लाभ’ नहीं मिल रहा। इस मामले को रद्द करने के लिए आप विधायकों ने चुनाव आयोग में याचिका लगाई थी।

वहीं राष्ट्रपति ने दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार के संसदीय सचिव विधेयक को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था। इस विधेयक में संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद के दायरे से बाहर रखने का प्रावधान था।

राष्ट्रपति ने किया था खारिज
तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने केजरीवाल सरकार द्वारा मंत्रियों के संसदीय सचिव बनाने के लिए दिल्ली विधानसभा सदस्यता संशोधन अधिनियम 2015 को मंजूरी नहीं दी । इन्हें लाभ के पद से बाहर रखने के लिए केजरीवाल सरकार ने पिछले साल ही विधानसभा से पारित कर दिया था। जिसे उपराज्यपाल नजीब जंग ने राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेज दिया था।

क्या हैं विकल्प
आयोग अगर विधायकों की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश करता है तो इसे विधायक हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। हालांकि जानकारों का एक मत यह भी है कि संसदीय सचिव नियुक्त करने संबंधी केजरीवाल के आदेश की वैधानिकता को हाईकोर्ट में पहले ही चुनौती दी जा चुकी है। अदालत इस मामले को उपराज्यपाल एवं मुख्यमंत्री के अधिकारक्षेत्र से संबंधित याचिका के साथ मिलाकर सुनवाई कर रही है। इसलिए हाईकोर्ट का फैसला आने तक निर्वाचन आयोग कोई सिफारिश नहीं करेगा। दिल्ली में 1997 में सिर्फ दो पद (महिला आयोग और खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष) ही लाभ के पद से बाहर थे। 2006 में नौ पद इस श्रेणी में रखे गए, पहली बार मुख्यमंत्री के संसदीय सचिव पद को भी शामिल किया गया था। दिल्ली सरकार मौजूदा कानून में संशोधन कर “मुख्यमंत्री और मंत्रियों के संसदीय सचिव” शब्द को शामिल करना चाहती है।

Share

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll Up