यूपी में 17 वर्षों के बाद एक बार फिर ‘कोटे में कोटा’ की सियासत तेज

यूपी में 17 वर्षों के बाद एक बार फिर ‘कोटे में कोटा’ की सियासत तेज

सपा-बसपा के जातीय गणित से निपटने के लिए भारतीय जनता पार्टी भी जातीय समीकरणों को दुरुस्त करने में जुट गई है। जल्द ही केंद्र सरकार प्रदेश की 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करने का आदेश जारी कर सकती है। इसके लिए कवायद तेजी से चल रही है। दरअसल, प्रदेश में सत्रह अति पिछड़ी जातियां अरसे से मांग कर रही हैं कि उन्हें एससी-एसटी की सूची में शामिल किया जाए। ऐसा करने से उनका आर्थिक व शैक्षिक विकास हो सकेगा। पिछड़ों में भी अति पिछड़ी श्रेणी में होने के कारण न तो समाज में उन्हें माकूल हिस्सेदारी मिल पा रही है, न ही आर्थिक विकास हो सका है। वैसे इसे लेकर पहले भी सपा और बसपा की सरकारें सियासत करती रही हैं लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं हो सका था।

राजभर ने रखी मांग
इस संबंध में भाजपा के शीर्ष नेताओं ने संजीदगी से मंथन किया है। हाल ही में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के सामने भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने यह मांग एक बार फिर रखी। उन्होंने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के सामने पूरे समीकरण रखे। बताया कि कैसे ये पिछड़ी जातियां अति पिछड़ी होती जा रही हैं और उन्हें एससीएसटी कोटे में क्यों रखना चाहिए।

केंद्रीय नेतृत्व सहमत
केंद्रीय नेतृत्व इस मांग से पूरी तरह सहमत दिखा और इस पर जल्द फैसला करने का भरोसा दिया। इसी के बाद सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय में इस प्रक्रिया को पूरा करने की कवायद तेजी से शुरू की गई है। भाजपा के एक शीर्ष नेता ने कहा कि ऐसा ओबीसी को अपने साथ रखने के लिए किया जाना चाहिए। भाजपा ‘सबका साथ सबका विकास’ की नीति पर चलते हुए इसे अंतिम रूप देने में जुटी हुई है।

सपा ने कैबिनेट से मंजूर कराया था
सपा सरकार ने दिसम्बर 2016 में इन सत्रह जातियों निषाद, बिन्द, मल्लाह,केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआरा, प्रजापति,राजभर, कहार, कुम्हार, धीमर, मांझी, तुरहा तथा गौड़ को एससी में शामिल करने के प्रस्ताव को प्रदेश कैबिनेट की मंजूरी दिला दी थी। इसके बाद केंद्र सरकार को संस्तुति भेजी थी। साथ ही इस संबंध में अधिसूचना जारी कर इन जातियों को अनुसूचित जाति के लाभ देने के निर्देश सभी डीएम और एसपी को जारी कर दिए थे। ये निर्देश सभी जिलों में भेज भी दिए गए थे। इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। तब से गेंद केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय के पाले में है।

हालत दलितों से बदतर
राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष राम आसरे विश्वकर्मा कहते हैं कि ओबीसी की इन सत्रह जातियों की आर्थिक व शैक्षिक स्थित दलितों से बदतर हो गई है। उनका न तो सरकारी नौकरी में प्रतिनिधित्व है और न ही वे समाज के अन्य क्षेत्रों में आगे आ सके हैं। सरकारी नौकरी में तो उनकी सिर्फ एक से दो फीसदी ही भागीदारी है। ऐसे में केंद्र सरकार को इसे तुरंत जारी करना चाहिए।

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