शादी का झांसा देकर संबंध बनाना बलात्कार नहीं

शादी का झांसा देकर संबंध बनाना बलात्कार नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने शादी करने का वादा कर शारीरिक संबंध बनाने के मामले को रद्द करते हुए कहा है कि आठ वर्ष की लंबी अवधि तक चले शारीरिक संबंधों को बलात्कार ठहराना मुश्किल है। वह भी तब, जब शिकायतकर्ता खुद मान रही है कि वे आठ वर्षों तक पति-पत्नी की तरह रहे हैं।
शीर्ष अदालत पहुचे इस मामले में शिकायतकर्ता की ओर से आरोप था कि वे पति-पत्नी की तरह से आठ साल तक साथ रहे तथा अब वह उससे भाग रहा है और धोखा दे रहा है।

कथित पति ने रेप (आईपीसी की धारा 376, 420, 323 और 506 के तहत) की कार्यवाही समाप्त करने के लिए कर्नाटक हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन हाईकोर्ट ने कार्यवाही समाप्त करने से मना कर दिया और कहा कि जब आदमी शादी करने का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाता है और यह पता लग जाए कि उसका शुरू से ही शादी करने का कोई इरादा नहीं था, तो इसे बलात्कार माना जाएगा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के भी कई फैसले हैं।

हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ शिवशंकर ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। जस्टिस एस.ए. बोब्डे और एल. नागेश्वर राव की पीठ ने आदेश में कहा कि हमें इस बात से मतलब नहीं है कि अपीलकर्ता और शिकायतकर्ता वास्तव में विवाहित हैं या नहीं। इसमें कोई शक नहीं है कि वे विवाहित जोड़े की तरह से साथ रहे हैं। यहां कि शिकायकर्ता ने भी यही कहा है कि पति-पत्नी की तरह से साथ रहे थे। लेकिन आरोपी पर बलात्कार का आरोप बनाए रखना मुश्किल है। हालांकि, हो सकता है कि उसने शादी के लिए झूठा वादा कर दिया हो। लेकिन आठ साल तक चले इस रिश्ते में शारीरिक संबंधों को बलात्कार मानना मुश्किल है।

शिकायतकर्ता ने कहा था शिवशंकर ने उसके माथे पर कुमकुम भी लगाया था और गले में मंगलसूत्र भी पहनाया था। लेकिन जब उसने उससे विवाह की बात की तो वह भागने लगा

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