पतरातू प्रखंड के छोटे से गांव लबगा में स्थित मां पंचबहिनी मंदिर की ख्याति बिहार-झारखंड में है। लोग यहां पूजा-अर्चना के अलावा विवाह के उद्देश्य से आते हैं। अब तक मां के दरबार में हजारों शादियां हो चुकी है। इधर अक्षय तृतीया को लेकर मंदिर में विशेष तैयारी चल रही है। यह एक शुभ मुहुर्त है, लिहाजा मंदिर में दर्जनों जोड़े विवाह के पवित्र बंधन में बंधेगे। इसके लिए यहां विशेष तैयारी भी चल रही है। मंदिर समिति पानी, बिजली, साफ-सफाई के अलावा श्रद्धालुओं के ठहरने और विवाह को लेकर मुक्कमल व्यवस्था करने में जुटी है। मंदिर समिति के अध्यक्ष लखन मुंडा और सचिव पुरूषोत्तम महतो ने बताया कि मंदिर में पूरे वर्ष शादियां होती हैं। अक्षय तृतीया जैसे मुहूर्त में तो अनगिनत जोड़े पहुंचते हैं, वहीं अन्य अवसरों पर एक दिन में 46 शादियों का यहां रिकॉर्ड है।
6 दशक में हजारों जोड़ों का हुआ है विवाह
मां पंचबहिनी मंदिर का इतिहास करीब छ: दशक पुराना है। 1962 में इसकी स्थापना हुई थी। 1992 से यहां शादियों की परंपरा ने जोर पकड़ा। पहले यहां रांची और हजारीबाग जिला के लोग ही आते थे। देखते-देखते औरंगाबाद, पलामू, पटना, नवाना, गया, रजौली, छपरा, जमशेदपुर, बोकारो, कोडरमा, लातेहार आदि बिहार-झारखंड के विभिन्न जिला से जोड़े यहां शादी के उद्देश्य से आने लगे।
पत्थर चढ़ा कर मन्नत मांगने की है परंपरा
मां पंचबहिनी मंदिर में अब मां सतबहिनी की भी पूजा होती है। मुख्य पुजारी शशि मिश्रा ने इसकी जानकारी देते हुए बताया कि यह पुरानी परंपरा है। सच्चे हृदय से मांगी हुई मन्नत यहां जरूर पूरी होती है। पुजारी ने बताया कि मंदिर नलकारी, एटियातु हुक्काकाट, चेतमा, हरिहरपुर और आराशाह नदी के संगम स्थल पर अवस्थित है। पतरातू डैम के फाटक से बहने वाले निर्मल जल में स्नान कर श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना करते हैं।
मंदिर पर आश्रित हैं 50 परिवार
मंदिर की व्यवस्था और फल-प्रसाद की दुकाने चलाने वाले करीब 50 परिवारों के जीवन की गाड़ी मंदिर के भरोसे चलती है। यहां श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए दो बड़े कमरे और एक हॉल है। वहीं सामने दो बड़े कांप्लेक्स हैं, जो किराये पर दिए जाते हैं। विवाह के लिए समिति लड़का पक्ष से पांच सौ और लड़की पक्ष से ढाई सौ रुपए रजिस्ट्रेशन शुल्क लेती है। इसके बदले उन्हे विवाह का प्रमाण पत्र दिया जाता है।
प्रकृति की गोद में है मां का दरबार
लबगा में प्रकृति की गोद में है मां पंचबहिनी का मंदिर। एक ओर पतरातू डैम का विहंगम दृश्य तो दूसरी तरफ डैम का भव्य फाटक, जिससे कल-कल कर बहती जल की धार संगीत पैदा करती है। यही नहीं, फोरलेन के ठीक बगल में होने के कारण श्रद्धालुओं को यहां पहुंचने में काफी सहूलियत होती है। इधर पतरातू को पर्यटन क्षेत्र घोषित करने के बाद मंदिर में सैलानियों की भीड़ और परिसर में फिल्मों की शूटिंग होने लगी है। इधर मंदिर की व्यवस्था को सींचने का काम संरक्षक प्रभात यादव, अध्यक्ष लखन मुंडा, रंजीत यादव, रामेश्वर गोप, पुरुषोत्तम महतो, सुरेश गोप, छोटू प्रसाद, अनिल साव, मनोज यादव, नंदलाल महतो, डोमन महतो, कैलास गोप आदि करते आ रहे हैं।