वैज्ञानिकों का कहना है कि शुक्र ग्रह के बादलों में जीवन होने की संभावना है। वैज्ञानिक अध्ययन के कुछ मॉडलों की मानें तो ऐसा वक्त भी था जब करीब दो अरब वर्षों तक के लिए शुक्र पर पानी मौजूद था और वह रहने योग्य था।
अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कोसिन मेडिसन के संजय लिमाये का कहना है, मंगल के मुकाबले यह बहुत लंबा समय है। नासा के एमिज रिसर्च सेंटर डेविड जे स्मिथ के अनुसार, पृथ्वी पर सामान्य तौर पर कई जीवाणु वातावरण से बाहर चले जाते हैं और 41 किलोमीटर की ऊंचाई पर भी जीवित मिलते हैं। खास तौर से तैयार किए गए गुब्बारों की मदद से यह पता लगाया गया है।
साथ ही हमारी पृथ्वी पर मौजूद बेहद खराब/ विकट परिस्थितियों में भी जीवित रहने वाले जीवाणुओं की संख्या बढ़ती जा रही है। जैसे येलोस्टोन के गर्म झरनों में, गहरे हाइड्रोथर्मल सुरंगों, प्रदूषित क्षेत्रों और अम्लीय झीलों में भी जीवाणु मिले हैं।
अमेरिका की कैलिफोर्निया स्टेट पॉलीटेक्नीक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राकेश मुगल का कहना है, पृथ्वी पर हमें पता है कि बेहद अम्लीय हालात में भी जीवन संभव है, वह कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं और सल्फयूरिक अम्ल छोड़ते हैं। उन्होंने कहा कि शुक्र पर मौजूद बादल भी ज्यादातर कार्बन डाइऑक्साइड और पानी की बूंदों के बने हैं, जिनमें सल्फयूरिक अम्ल है। ऐसे में वहां जीवाणुओं के होने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है।