निकाह हलाला और बहुविवाह (चार शादियां) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पांच सदस्यीय संविधान पीठ विचार करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस संबंध में विचार करते हुए मामले में केंद्र सरकार से जवाब भी मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की तीन सदस्यीय पीठ ने समानता के अधिकार का हनन और लैंगिक न्याय सहित कई बिंदुओं पर दायर जनहित याचिकाओं पर विचार किया। पीठ ने इस दलील पर भी विचार किया कि 2017 में संविधान पीठ के बहुमत के फैसले में तीन तलाक को असंवैधानिक करार देने वाले प्रकरण से बहुविवाह और निकाह हलाला के मुद्दे बाहर रखे गए थे।
अधिवक्ता और भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया कि मुस्लिम महिलाओं को उनके बुनियादी अधिकार दिलाने के लिए इन प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाना वक्त की जरूरत है। याचिका में कहा गया है कि तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथाओं की वजह से मुस्लिम महिलाओं को बहुत अधिक नुकसान हो रहा है और इससे उनके संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का भी हनन हो रहा है। याचिका में यह घोषित करने का आग्रह किया गया है कि आईपीसी की धारा 498- ए सभी नागरिकों पर लागू होती है और तीन तलाक इस धारा के तहत महिलाओं के प्रति क्रूरता है।
तीन मुस्लिम महिलाओं की भी याचिका
मुस्लिम महिलाओं समीना बेगम, नफीसा बेगम, मौलिम मौहसिम ने भी 14 मार्च को शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर कर कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ की वजह से पति या पत्नी के जीवन काल में ही दूसरी शादी को अपराध के दायरे में लाने संबंधी भारतीय दंड संहिता की धारा 494 इस समुदाय के लिए निरर्थक है। कोई भी शादीशुदा मुस्लिम महिला ऐसा करने वाले अपने शौहर के खिलाफ शिकायत दायर नहीं कर सकती है। महिला ने आग्रह किया है कि मुस्लिम विवाह विच्छेद कानून 1939 को असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 के प्रावधानों का हनन करने वाला घोषित किया जाए।
प्रथाओं की वजह से झेली यातनाएं
याचिकाकर्ताओं का दावा है कि वह खुद इन प्रथाओं की पीड़ित हैं। एक महिला का आरोप है कि उसका पति व परिवार उसे दहेज के लिए यातनाएं देते थे और उसे उसके वैवाहिक घर से दो बार बाहर निकाला गया है। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि उसके शौहर ने कानूनी तरीके से तलाक दिए बगैर ही दूसरी महिला से शादी कर ली और पुलिस ने धारा-4 94 और धारा 498- ए के तहत प्राथमिकी दर्ज करने से भी इनकार कर दिया।
क्या है बहुविवाह
बहुविवाह की प्रथा के तहत मुस्लिम समुदाय में एक आदमी को चार शादियां करने की इजाजत है। इसके लिए उसे तलाक लेने की भी जरूरत नहीं है और एक साथ चार पत्नियां रख सकता है।
क्या है निकाह हलाला
निकाह हलाला में अगर पति-पत्नी का तलाक हो जाता है और वे फिर से एक होना चाहते हैं, तो इसके लिए महिला को किसी दूसरे व्यक्ति से निकाह करना होगा और फिर तलाक लेना होगा।
मुता निकाह के खिलाफ भी याचिका
हैदराबाद के एक वकील ने 18 मार्च को बहुविवाह को चुनौती देने के साथ-साथ मुता और निकाह मिसयर की प्रथा का विरोध किया था। ये निकाह तय समय के लिए होता है और मेहर की रकम तय हो जाती है। निकाह से पहले ही यह तय कर लिया जाता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत इस तरह की सारी शादियां मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन करती हैं।
कोट
‘बहुविवाह और निकाह हलाला के मुद्दे पर विचार के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ का गठन किया जाएगा।’ –सुप्रीम कोर्ट
‘मुस्लिम महिलाओं को उनके बुनियादी अधिकार दिलाने के लिए इन प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाना वक्त की जरूरत है।’ -अश्विनी कुमार उपाध्याय, भाजपा नेता (जनहित याचिका)
इन धाराओं के तहत अपराध घोषित हो
-निकाह हलाला को धारा-375 के तहत बलात्कार का अपराध घोषित करने की मांग
-बहुविवाह के मामले धारा-494 (पहली पत्नी या पति के होते हुए दूसरी शादी) के तहत सजा हो
तीन तलाक पर फैसले के बाद मुहिम शुरू
22 अगस्त, 2017 को सर्वोच्च अदालत तीन तलाक के खिलाफ फैसला सुनाया। इसके बाद ही निकाह हलाला और चार शादियों की प्रथा के खिलाफ मुहिम शुरू हुई।