लखनऊ। जिस माता पिता ने अपनी बेटी को पढ़ाया लिखाया उसकी हर ख्वाहिश को पूरा करने के लिए खुद कष्ट झेले 22 वर्षो तक अपनी लाडली बेटी का पालन पोषण कर जिन्दगी भर की कमाई से उसकी धूमधाम से शादी कर उसे उसकी सुसराल भेजा था उसी बेटी ने शादी के तीन साल बाद अपनी सुसराल मे पति सास ससुर नन्दन की प्रताड़ना से तंग आकर फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली । बेटी की आत्महत्या की सूचना के बाद बदहवास पहुॅचे माता पिता की अपनी लाडली बेटी की लाश देख कर आॅखे खुली की खुली रह गई माता पिता ने अपनी लडली बेटी की मौत का ज़िम्मेदार उसके सुसराल वालो को ठहराते हुए पति सास ससुर दो नन्दो के खिलाफ दहेज हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया । 22 वर्षो तक जिन माता पिता ने अपनी बेटी को पालने के लिए संघर्ष किया उसी बेटी की मौत के बाद अब माता पिता के सामने ये चुनौती है कि उनकी बेटी की मौत के ज़िम्मेदारो को अब वो सज़ा दिलाए । आत्महत्या करने वाली माता पिता की लाडली बेटी तीन साल का संघर्ष नही झेल पाई और उसके माता पिता ने उसके जीवन के 25 साल उसकी खुशी के लिए संघर्ष किया अब उसकी मौत के बाद उसे न्याय दिलाने के लिए ंसंघर्ष करते रहेगे। औलाद की खातिर ज़िन्दगी भर संघर्ष करने वाले ये अभागे माता पिता है मजौवा गोन्डा के रहने वाले राम स्वरूप और उनकी पत्नी गीता देवी। राम स्वरूप ने अपनी बेटी सुशीला उर्फ बीटा का विवाह साल 2017 मे त्रिवेण्ी नगर 3 कंचनपुरम अलीगंज के रहने वाले सुरेश चन्द्र कश्यप के बेटे सतीश चन्द्र कश्यप के साथ किया था । सुशीला ने शादी से पहले कक्षा 12 तक पढ़ाई की थी विवाह के उपरान्त सुशीला ने एक सुन्दर से पुत्र को जनम दिया अब वो डेढ़ माह का है । मंगलवार की रात्रि करीब 1 बजे सुशीला ने अपनी सुसराल मे कमरे की छत मे लगे कुन्डे मे साड़ी का फंदा बना कर फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली । सुशीला की आत्महत्या की सूचना के बाद उसके माता पिता लखनऊ पहुॅचे और बेटी की लाश को देख कर पहले तो जी भर के रोए फिर बेटी के पति सतीश चन्द कश्यप सास निशा ससुर सुरेश चन्द्र दो नन्द मंजू और अंजू के खिलाफ अलीगंज थाने मे उनकी बेटी को दहेज के लिए प्रताड़ित कर हत्या किए जाने का मुकदमा दर्ज करा दिया । पुलिस ने दहेज हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया । जिस बेटी को लाल जोड़े मे नई ज़िन्दगी की शुरूआत करने के लिए माता पिता ने सुसराल रूखसत किय था अब वही माता पिता अपनी लाडली बेटी की अर्थी उठते देखेगे और बेटी सुशीला को न्याय दिलाने के लिए पहले थाने के चक्कर लगाएगे फिर बरसो बरस अदालतो की खाक छानेगे । सुशीला द्वारा आत्महत्या कर लेने से भले ही उसे प्रताड़ना से निजात मिल गई हो लेकिन मरने के बाद अगर आत्मा जीवित रहती है तो क्या उस आत्मा को सुशीला के मासूम बच्चे का बिना मां के अन्धकार मे जा रहा भविष्य नही नज़र आएगा क्या उस आत्मा को अपने माता पिता की उसे न्याय दिलाने के लिए बेबसी नज़र नही आएगी। सवाल वही है जीवन के संघर्ष से हार कर आत्महत्या करने से किसका लाभ हुआ यहंा भी किसी का लाभ नही हुआ बल्कि मासूम बच्चा अनाथ हुआ पति सास ससुर नन्द जेल जाएगे और माता पिता जीवन के लम्बे समय तक न्याय के लिए कोर्ट कचेहरी वकीलो के दर पर चक्कर लगाएगे और अपने खून पसीने की कमाई को अब मुकदमे बाज़ी मे खर्च करेगे। अब कोई दूसरी सुशीला ज़िन्दगी की मामूली सी परेशानी से तंग आकर आत्महत्या जैसा कदम न उठाए इस लिए ज़रूरत है ऐसे लोग जो अवसाद या किसी परेशानी मे जीवन गुज़ार रहे है उनके आसपास रहे और ज़िन्दगी से परेशान ऐसे अवसाद ग्रस्त लोगो के काउन्सलर बन कर उन्हे आत्महत्या जैसा भयानक कदम उठाने से रोकने मे उनके मददगार बने क्यूकि आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नही है। ये खबर मात्र एक खबर बन कर न रह जाए बल्कि ये खबर ऐसे लोगो के लिए जागरूकता का संदेश बने जो लोग अवसाद मे है या जिन लोगो के आसपास रहने वाले लोग अवसाद मे है खबर का मकसद ये बने की हमारे आसपास रहने वाला कोई भी व्यक्ति अब ज़िन्दगी से हार कर मौत को खुद गले न लगाए ऐसे लोग जो जीवन से संघर्ष करने मे हार की तरफ बढ़ रहे है समाज के लोग ऐसे लोगो के हम सफर बन कर उनके जीवन की रक्षा करने मे महत्वपूर्ण भागीदारी निभाए।
