सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित है मासूम, दो वक्त की रोटी के लिये काम करने को मजबूर
लखनऊ। कोविड-19 के दृष्टिगत केन्द्र व राज्य सरकार के निर्देषानुसार अंर्तराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस पर इस बार कोई आयोजन नहीं किया जायेगा। सहायक श्रम आयुक्त रवि श्रीवास्तव ने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री, द्वारा अपने आवास से प्रातः दस बजे संषोधित कण्डीशनल कैश ट्रांसफर योजना (बाल श्रमिक विद्या योजना) का शुभारम्भ किया जायेगा। इस अवसर पर मुख्यमंत्री द्वारा प्रत्येक जिला मुख्यालय के वीडियो काॅन्फे्रसिंग कक्ष में उपस्थित श्रम विभाग के अधिकारियों, उन्मुक्त बाल श्रमिकों,बाल श्रम उन्मूलन समिति के सदस्यों के साथ वीडियो काॅन्फे्रसिंग के माध्यम से संवाद भी किया जायेगा। कोविड-19 प्रोटोकाल के चलतें इस बार बाल श्रम निषेध दिवस पर कोई आयोजन नहीं होने के कारण जूम मीटिंग के माध्यम से श्रम आयुक्त सुधीर एम. बोबडे विभिन्न स्टेक होल्डर्स के साथ वीडियो काॅन्फ्रेसिंग के माध्यम से बाल श्रम उन्मूलन के प्रति जागरूक करेगें। जिसमें यूनीसेफ के सदस्य प्रतिनिधि, श्रम आयुक्त कार्यालय के समस्त अपर,उप-श्रमायुक्त, स्वयसेवी संस्थाओं व शैक्षणिक संस्थाओं के प्रतिनिधि, बाल श्रम उन्मूलन से संबंधित प्रशासनिक अधिकारी, व्यापार मंडलों के प्रतिनिधि, चाइल्ड लाइन के प्रतिनिधि, नेहरू युवा केन्द व राष्ट्रीय सेवा योजना के समन्वयक आदि प्रतिभाग करेगें। वर्ष 2019 में दस जून से पच्चीस जून तक बाल श्रम निषेध पखवाड़ा मनाया गया था। परन्तु इस बार कोरोना के चलते सरकार ओर जिला प्रशासन की तरफ से किसी भी प्रकार के आयोजनों पर रोक होने के कारण बेबिनार आदि के माध्यमों से बाल श्रम निषेध दिवस संबंधित एनजीओं द्वारा मना कर लोगोे को जागरूक किया जायेगा। राजधानी के वीआईपी कहे जाने वाले इलाके हजरतगंज से लेकर सभी इलाकों के होटल, रेस्टोरेंट, चाय के होटल में मात्र दो हजार से तीन हजार महीना पर सैकड़ों मासूम सुबह से देर रात तक काम करते दिखायी देते है। चाहे वह लालबाग दुर्गमा खाने का होटल हो शर्मा चाय का होटल हो ढाबा हो या विधायक निवास के पास के छोटे होटल। गाड़ियों की मरम्मत करने वाले छोटे-छोटे गैराज हो या तालकटोरा का औद्योगिक क्षेत्र हो। ऐसे हजारों स्थान केवल राजधानी लखनऊ में ही है जहाॅ बाल श्रम कानून की धज्जियां उडायी जाती रही है। हजरतगंज, कैसरबाग, आलमबाग, अवध अस्पताल चैराहे पर, महानगर, निशातगंज तथा हर माॅल के आस-पास, मन्दिरों के आस-पास, रिवर फ्रन्ट, 1090 चैराहे के आस-पास जहां भी भीड़ होती हो, वहाॅ पाॅच साल से दस साल तक के मासूम याचना भरी नजरों से कुछ मांगते नजर आते है या हाथ में कपड़ा लेकर गाड़ियों को पोछने के नाम पर भीख माॅग रहे है। खाने पीने के होटलो के पास खाने के नाम पर भीख माॅग रहे है। वही नाबालिग बच्चे ई-रिक्शा भी चला रहे है। ये सब सभी को दिखता है परन्तु श्रम विभाग, पुलिस और प्रशासन को नहीं दिखता है। कानून के अनुसार चैदह वर्ष तक की आयु के बच्चों से काम करवाना गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है जिसमें काम करवाने वाले नियोक्ता को न्यूनतम् छः महीने से दो वर्ष तक जेल व न्यूनतम् बीस हजार से पचास हजार रूपये के जुर्माने का प्रावधान है। नियोक्ता के साथ-साथ अभिभावक के विरूद्ध भी एसीएम कोर्ट मे धारा 107/16 के तहत कार्यवाही की जा सकती है। जिला बाल संरक्षण अधिकारी सचिन सिंह ने संक्षेप में बताया कि बाल श्रम निषेध के तहत अवमुुक्त कराये गये बच्चों कों बाल गृहों में रखा जाता है। जहां खाने-पीने कपड़े पढ़ाई आदि की जिम्मेदारी सरकार की होती है। प्रवर्तकता कार्यक्रम के अन्र्तगत 0 से अठारह वर्ष तक आयु सीमा के बच्चे जो शिक्षा से विरत् होकर काम कर रहे है तो उनको परिवार में पुर्नवासित किया जाता है। और यदि परिवार की वार्षिक आय ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतम् रू0 46080- तथा शहरी क्षेत्रों मंे रू0 56,000- हो को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। यदि बच्चे की माता विधवा है अथवा माता-पिता नही है, कुष्ठ रोग या एचआईवी से पीड़ित है, परिवार की आय का कोई स्रोत नही है, बाल गृहो से मुक्त कराकर परिवार में पुर्नवासित किये गये बच्चे आदि। ऐसे पात्र बच्चों को कम से कम एक तथा अधिकतम् तीन वर्ष तक रू0 दो हजार प्रति माह की वित्तीय सहायता देने का प्रावधान किया गया है। उ0प्र सरकार अपनी योजनाओं के जरिये बाल श्रम उन्मूलन के प्रति कटिबद्ध है परन्तु बात जिला प्रशासन की इच्छा शक्ति पर आकर रूक जाती है। जमीनी हकीकत कुछ और ही दिखायी देती है। वास्तव में मात्र बाल श्रम निषेध दिवस या पखवाड़ा मनाने से और केवल भाषणबाजी से बाल श्रम को रोका नही जा सकता है। जरूरत है दृढ़ इच्छाशक्ति और ईमानदारी से काम करने की वरना श्रम विभाग के अधिकारी सब जानते है कि कहां-कहां बाल श्रम कानून का उल्लघंन हो रहा है। वे निरीक्षण करने अवश्य जाते है पर केवल अपना हिस्सा लेकर अपनी आॅखें बन्द कर लेते है। उनको भी झूठे बर्तन धोते और टेबल साफ करते छोटू उस्ताद दिखते है पर वे उनके बचपन का अनदेखा कर देते है। श्रम विभाग के अनुसार कानूनी जटिलताओं के चलते अभी बहुत से पुराने ही मामले लंबित पडे़ हुये है जिनके तत्काल निस्तारण की आवश्यकता है। देखना यह है कि जिलाधिकारी इस बार बाल श्रम निषेध दिवस पर कितने मासूमों को अवमुक्त कराकर सरकारी योजनाओं के तहत उनके मासूम बचपन को मुस्कान दे पाते है। केवल अकेली सरकार या जिला प्रशासन कुछ नही कर सकता है इसके लिये आम नागरिकों को भी सहयोग करना चाहिये। इसके लिये टोल फ्री नंबर 1098 है। अपने आस-पास बाल श्रम की या भीख माॅग रहे बच्चों की सूचना इन पर दे सकते है। साथ ही स्मार्ट फोन धारक अपने फोन में पेन्सिल पोर्टल के माध्यम से ऐसे बच्चो की फोटो या जानकारी शेयर करके इनकी मदद कर सकते है। प्रशासन भी सख्ती से निर्देश दे सकता है कि जिस क्षेत्र में बाल श्रम पाया जाता है या बच्चे भीख मांग रहे है वहां उस क्षेत्र के श्रम अधिकारी और थानेदार जिम्मेदार होगे और उनकी ही जबाबदेही होगी।
