एकता की मिसाल हिन्दू भाईयो ने मिल कर कराया मुस्लिम का अतिम संस्कार

एकता की मिसाल हिन्दू भाईयो ने मिल कर कराया मुस्लिम का अतिम संस्कार

 
पुलिस ने निभाई अपनी ज़िम्मेदारी शव को कब्रिस्तान तक पहुॅचवाया
दुनियंा के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत मे अगर राजनिति से हट कर देखा जाए तो हिन्दू मुस्लिम एकता की जो नज़ीरे भारत मे अक्सर मिलती है वो कही और नही मिलती है। देश के हिन्दू मुसलमान भले ही राजनिति दृष्टी से दो समुदायो मे बाटे जाते रहे है लेकिन किसी भी विपत्ति के समय ये दो समुदाय एक इन्सान की तरह से ही सामने आते देखे गए है । इन्सानियत की लखनऊ मे आज एक ऐसी नज़ीर देखी गई जिसने हिन्दू मुसलमान के फासले को समाप्त ही कर दिया। मूल रूप से आलम बाज़ार आसाम के रहने वाले 65 वर्षीय असगर अली पिछले 20 वर्षो से चाौक थाना क्षेत्र अन्तर्गत दरियााली मस्जिद के आसपास सड़क के किनारे अपनी पत्नी सीमा और चार बच्चो के साथ रह कर मेहनत मज़दूरी करते थे । पिछले करीब एक वर्ष से असगर अली गम्भीर बीमारी से ग्रसित हो गए उनके दो बच्चो की मृत्यु भी हो गई थी लाक डाउन लागू होने के बाद वो अपने परिवार के साथ लेटे हुए हनुमान जी के मन्ंिदर के पास सड़क पर बने बस स्टाप के टीन शेड के नीचे ही रह रहे थे असगर अली की आज दोपहर मौत हो गई। असगर वैसे ही बीमार थे उस पर से लाक डाउन ने उनके परिवार पर मुसीबतो का पहाड़ खड़ा कर दिया था । असगर की मौत के बाद उनकी पत्नी उनके शव के पास बैठ कर बिलख रही थी तभी वहा मौजूद ठाकुर कमल सिंह, कुलदीप और पत्रकार रजत गुप्ता पहुॅचे और असगर की पत्नी को सांतवना दी । गरीब सीमा के पास तो अपने पति के अंंितम संस्कार के लिए भी पैसे नही थे । पत्रकार रजत गुप्ता ने असगर अली के अंतिम संस्कार के लिए सबसे पहले मदद के हाथ बढ़ाए । मदद की इस कड़ी मे चाौक पुलिस भी जुड़ गई उपनिरीक्षक ज्ञानेश सिंह भी मौके पर पहुॅचे और देखते ही देखते कुलदीप ने असगर के अंतिम सस्कार के लिए पाॅच हज़ार रूपए की राशि एकत्र कर ली । पुलिस द्वारा असगर के शव को कब्रिस्तान पहुॅचाने के लिए सूबेदार से शव वाहन लिया गया । शव वाहन के लिए भी सूबेदार ने कोई पैसा नही लिया। पत्रकार रजत गुप्ता के साथ कई मुस्लिम पत्रकारो ने भी असगर के अंतिम सस्कार मे मदद की लेकिन यहंा देखने को ये मिला कि मुस्लिम व्यक्ति के अंतिम संस्कार के लिए सबसे पहले हिन्दू धर्म के कई लोगा सामने आए । सड़क के किनारे गम्भीर बीमारी के कारण दम तोड़ने वाले असगर का मुस्लिम रीति रिवाज के अनुसार कब्रिस्तान मे अंतिम संस्कार किया गया । गरीब असगर की मौत के बाद इन्सान के प्रति इन्सान की जो बेहतर सोंच देखने को मिली उससे ये स्पष्ट हो गया कि हिन्दू मुसलमानो मे भले ही एक दूसरे के बीच ख्ूान का रिश्ता न हो लेकिन खून के रिश्ते से बड़ा हिन्दुस्तानी और इन्सानियत का रिश्ता है। असगर का आंतिम संस्कार कराया गया और उसकी पत्नी और बच्चे के भरण पोषण के लिए भी कुछ लोगो द्वारा उनकी मदद की गई। अपने पति के शव के करीब बैठ कर रो रही पत्नी सीमा यही कह रही थी कि काश लाक डाउन से पहले हम अपने गाॅच चले गए होते तो शायद ये नौबत न आती क्यूकि लाक डाउन के दौरान असगर अली का इलाज भी नही हो पाया।

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