लखनऊ। समाजवादी पार्टी ने सरकारी नौकरियों व प्रोन्नतियों में दलित-आदिवासियों को आरक्षण देने को अनिवार्य करने के बजाए उसे राज्य सरकारों के विवेक पर छोड़ने वाले उच्चतम न्यायालय के ताजा आदेश से असहमति जताते हुए इसके लिए भाजपा और उसकी सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। बता दें कि समाजवादी पार्टी ने सोमवार को जारी बयान में कहा श्जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी भागीदारीश् समाजवादी पार्टी प्रमोशन में आरक्षण का समर्थन करती है। जातिगत जनगणना हो जिससे पिछड़ों, दलितों, अल्पसंख्यकों,सामान्य वर्ग को उनका संवैधानिक हक मिल सके। डॉ. लोहिया, बाबा साहब सामाजिक न्याय हेतु समानता के इन्हीं अवसरों के लिए संघर्षरत रहे। अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा, हमारे देश में सदियों से वंचित दमित-दलित समाज को बराबरी का हक देने के लिए आरक्षण एक कारगर उपाय रहा है। कम्युनिस्ट पार्टी (माले) ने सरकारी नौकरियों व प्रोन्नतियों में दलित-आदिवासियों को आरक्षण देने को अनिवार्य करने के बजाए उसे राज्य सरकारों के विवेक पर छोड़ने वाले उच्चतम न्यायालय के ताजा आदेश से असहमति जताते हुए इसके लिए भाजपा और उसकी सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। पार्टी के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने सोमवार को जारी बयान में इस आदेश को निराशाजनक और सामाजिक न्याय के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि इस आदेश के व्यवहारिक क्रियान्वयन में नौकरियों में वंचित समूहों को आरक्षण मिलना ही बंद हो जाएगा। भाजपा और उसका पितृ संगठन आरएसएस यही चाहते भी हैं। कई मौकों पर आरएसएस प्रमुख इसका इजहार भी कर चुके हैं। न्यायालय के ताजा आदेश की पृष्ठभूमि में उत्तराखंड का एक मामला था, जहां भाजपा की सरकार है। उन्होंने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी गणराज्य बनाने व सामाजिक न्याय मुहैया कराने की बात कही गई है।
