हाथ मलते रह गए उनके मित्र मौत की आगोश मे समा गए अलीम
सैय्यद अलीम कादरी फाईल फोटो
लखनऊ। मुटिठयों मे खाक भर कर दोस्त आए वक़्त-ए-दफ्न ज़िन्दगी भर की मोहब्बत का सिला देने लगे। पाॅच दिनो तक मेडिकल कालेज के ट्रामा सेन्टर मे ज़िन्दगी और मौत से जंग लड़ने के बाद पत्रकार सैय्यद अलीम कादरी गुरूवार को मौत से जंग हार गए और गुरूवार को उनका देहान्त हो गया । शुक्रवार को पत्रकार अलीम कादरी को ऐशबाग कब्रस्तान मे नम आॅखो से सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया। 44 वर्षीय अलीम कादरी पत्रकारो मे इतने लोकप्रिय थे जिसका प्रमाण उनके अस्पताल मे भर्ती होने के बाद देखने को मिला। आर्थिक तौर से बेहद कमज़ोर अलीम कादरी अपने पीछे बूढ़ी माॅ सिराजुन निसाा पत्नी फरज़ाना 7 वर्षीय बेटे गौसुल इस्लाम 2 वर्षीय बेटी मोईना फात्मा को छोड़ गए है। 30 नवम्बर की दोपहर अलीम कादरी को अचानक ब्रेन स्ट्रोक पड़ा तो उनकी पत्नी फरज़ाना मोहल्ले के कुछ लोगो की मदद से लेकर उन्हे बलरामपुर अस्पताल पहुॅची क्यूकि अलीम कादरी का मोबाईल उनकी पत्नी के पास था इस लिए उनकी पत्नी ने अपने पति के मोबाईल मे उनके कुछ मित्रो के नम्बर तलाश कर उन्हे फोन किया तो चन्द मिन्टो के अन्दर बलरामपुर अस्पताल दो पत्रकार पहुॅच गए लेकिन क्यूकि अलीम कादरी की हालत ठीक नही थी इस लिए उन्हे ट्रामा सेन्टर रिफर कर दिया गया। यहंा से इन्सानियत की मिसाले लगातार देखने को मिली अलीम कादरी के दो साथी पत्रकारो ने उन्हे ट्रामा सेन्टर पहुॅचाया जहंा डाक्टरो ने उनकी हालत को नाज़ुक बताते हुए वेन्टीलेटर की आवश्यकता बताई लेकिन वेन्टीलेटर उपलब्ध नही था धीरे धीरे अलीम कादरी को ब्रेन स्ट्रोक पड़ने की खबर सोशल मीडिया के ज़रिए उनके तमाम दोस्तो के मोबाईल पर घूमी तो देखते ही देखते ट्रामा सेन्टर पर पत्रकारो का तांता लग गया। आर्थिक तौर से बेहद कमज़ोर अलीम के परिवार को ये एहसास ही नही हुआ कि अलीम कादरी को गम्भीर बीमारी हुई है जिसके इलाज मे बेशुमार पैसा खर्च होगा । ट्रामा सेन्टर अपने मित्र अलीम कादरी की सहायता के लिए पहुॅचे उनके पत्रकार मित्रो ने सहायता की जो मिसाल पेश की वो एक नज़ीर बन गई। क्या हिन्दू क्या मुसलमान यंहा धर्म जाति का तो भेद भाव ही मिट गया डाक्टर दवा की पर्चियां लिखते रहे और दवा आती रही मंहगी जाॅचे कैसे हो गई पता ही नही चला । सोशल मीडिया के ज़रिए अलीम कादरी की बीमारी की खबर दूर दूर तक गई तो जो उनसे मिलने नही आ सका उसने अपने स्तर से दूर रह कर ही उनकी सहायता के लिए कदम बढ़ा दिए। मलिन बस्ती मे किराए के मकान मे रह कर मुशकिल से किराया दे पाने वाले अलीम कादरी की शख्सियत की झलक उनके अस्पताल मे भर्ती होने के बाद पता चली। पाॅच दिनो तक अलीम कादरी ट्रामा सेन्टर मे तीसरी मंज़िल पर क्रिटिकल केयर युनिट मे वेन्टीलेटर पर खामोश लेटे रहे और गुरूवार को उन्होने कब अतिंम संास ली पता ही नही चला डाक्टरो ने आकर बताया कि अलीम कादरी नही रहे। उनकी मौत की खबर सुनते ही पत्रकारिता जगत मे शोक की लहर दौड़ गई। स्वर्गीय अलीम कादरी मूल रूप से मध्य प्रदेश के भोपाल के रहने वाले थे लेकिन अपने जीवन का अधिक्तर समय उन्होने लखनऊ मे ही गुज़ारा था। शुक्रवार को जुमे की नमाज़ के बाद अलीम कादरी के जनाज़े को नम आॅखों के साथ सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया।
सामने आई हिन्दू मुस्लिम एकता की नज़ीर साबित हो गया इन्सानियत से बड़ा कुछ नही
मौजूदा समय मे देश मे जहा लोग धर्म और जाति के आधार पर बटते नजर आ रहे है वही ये बात अलीम कादरी के देहान्त ने साबित कर दी की मोहब्बत से बड़ी कोई जाति या कोई धर्म नही होता देश मे मंदिर मस्जिद के नाम पर भले ही राजनितिक दल अपनी रोटियां सेक कर अपने नफे नुक्सान का आकलन कर रहे हो लेकिन वास्तविक तौर पर इन्सान इन्सान एक है वास्तिविक तौर पर इस देश मे मदद को जाति और धर्म के आधार पर नही बाटा जा सकता है। सय्यद अलम कादरी मुसलमान थे लेकिन जब उन्हे अपने मित्रो की सहायता की ज़रूरत पड़ी तो उन्होने अपनी ज़बान से किसी से कोई सहायता नही मांगी बावजूद इसके उनकी मदद के लिए जो लोग सामने आए उनमे जितने मुसलमान थे कमोबेश उतने ही हिन्दू भी थे । बलरामपुर अस्पताल से ट्रामा सेन्टर अलीम कादरी को पहुॅचाने वाला एक हिन्दु एक मुसलमान था ट्रामा सेन्टर पहुॅचने के बाद उनके हिन्दू मुस्लिम मित्रो ने मिल कर उनके इलाज मे सहायता शुरू की वेन्टीलेटर की व्यवस्था कराने मे मुसलमानो से ज़्यादा उनके हिन्दु मित्रो ने जीजान से कोशिश कर उन्हे महज़ चार घंटे के अन्दर वेन्टीलेटर की व्यवस्था कराई। वेन्टीलेटर मिलने के बाद हिन्दू मुसलमानो ने मिल कर उनकी दवा इलाज की ज़िम्मेदारी ले ली और आर्थित तौर से बेहद कमज़ोर अलीम के परिवार को उनकी गरीबी का एहसास ही नही हुआ। सोशल मीडिया पर अलीम कादरी के बारे मे पता चलने के बाद दूर दराज़ के ज़िलो से भी लोगो ने ट्रामा सेन्टर पहुॅच कर अलीम कादरी के परिवार से मिल कर अपना नाम बताए बगैर ही उनकी आर्थित सहायता कर दी और चले गए। ब्रेन स्ट्रोक की वजह से मौत की नींद सोने वाले पत्रकार अलीम कादरी मुसलमान थे तो आज के समय के हिसाब से उनकी मदद खान ,सिददीकी ,अन्सारी ,घोंसी ,ज़ैदी रिज़वी आदि को करना चाहिए थी लेकिन ऐसा नही हुआ यहा मुसलमानो की इन सब जातियो के साथ हिन्दु भाईयो की अनेक जातियो वर्मा, तिवारी , शुक्ला, बालमिकी, वाल्टर द्धिवेदी त्रिवेदी ,सिंह निगम आदि जातियो के लोग मुसलिम जातियो के लोगो से आगे नज़र आए। अलीम कादरी की मौत से भले ही पत्रकारिता जगत को अपूर्णीय क्षति पहुॅची हो लेकिन एकता भाई चारे की जो नज़ीर उनकी मौत से मिली वो शायद आज की हकीकत है और इस हकीकत से देश के सौ करोड़ से ज़्यादा की आबादी के लोगो को रूबरू होना ज़रूरी था ।
बिना रूके लम्बी बाते करने वाला पत्रकार अचानक खामोश हो गया
पाॅच दिनो की बीमारी के बाद मौत की नींद सोए सै0 अलीम कादरी ज़्यादा बोलने के लिए पहचाने जाते थे स्वर्गीय कादरी जब अपने मित्रो के साथ बैठते थे तो उनके मित्रो को बोलने का मौका कम ही मिलता था लेकिन अलीम कादरी बिना रूके बिन थके बोलते रहते थे ज़्यादा बोलने के लिए मशहूर अलीम कादरी अचानक ऐसे खामोश हो जाएगा शायद ये किसी ने सोंचा भी नही था । 30 तारीख की दोपहर घर में ब्रेन स्ट्रोक पड़ने के बाद अलीम कादरी जो खामोश हुए फिर वो कभी बोले ही नही न अस्पताल मे उन्होने न ज़बान हिलाई न नज़रो के ईशारे से ही कुछ कहा अचानक खामोश हुए अलीम खामोशी से ही दुनिया से रूखसत हो गए।