लखनऊ। दुनिया में इंसान को इस लिए आबाद किया गया कि वह खुदा पाक की फरमा बश्रदारी करे और अपने सजदों से खुदा पाक की इस जमीन को आबाद करे। इन्सान को खाने पीने या अन्य चीज़ों की फिक्र के लिए नही भेजा गया। दुनिया को बनाने का जो मकसद था उसके पेश नजर सब से पहले उस घर को निर्माण करने की सख़्त जरूरत थी जो खुदा की इबादत का केन्द्र हो। इस लिए खाने काबा को सबसे पहले बनाया गया। पैग़ाम यह था कि इंसान को सबसे पहले अपने पैदा करने वाले के हुक्म को पूरा करने की फिक्र करनी है। जिस तरह देश का प्रशासन अपने केन्द्र के अन्र्तगत है इसी तरह मुसलमानों को मस्जिदों के अन्र्तगत रहना है, जहाँ हिदायत व रहमत के चश्मे जारी होते हैं। यही वजह है कि सहाबा रजि0 की जीवनी में हमें बहुत सारी घटनायें मिलती हैं कि सहाबा रजि0 को जब भी कोई मुसीबत पेश आती तो वह मस्जिदों का रूख करते, उनकी नजदीक मस्जिद केवल नमाज पढ़ने की जगह नही बल्कि समाज को सुधारने का भी एक स्थान थी इन विचारों को इमाम ईदगाह व काजी-ए-शहर लखनऊ मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने प्रकट किया वह आज इस्लामिक सेन्टर आफ इण्डिया फरंगी महल के तत्वाधान में होने वाले दस दिवसीय जलसाहाय ‘‘शुहादाये दीने ह़क व इस्लाहे माआशरह’’ के अन्र्तगत दारूल उलूम फंरगी महल के मौलाना अब्दुर रशीद फरंगी महली हाल में चैथे जलसे को सम्बोधित कर रहे थे। मौलाना ने कहा कि मस्जिदों को आबाद करना ईमान कामिल की सबसे बड़ी दलील है और मसाजिद बनाने वालों के लिए बहुत बड़ा सवाब है। जो व्यक्ति मस्जिद के निर्माण में भाग लेता है, चाहे वह एक ईंट देकर या रूपये देकर उसका शुमार भी मस्जिद बनाने वालों में है, लेकिन हमें यह नही भूलना चाहिए कि सिर्फ मस्जिदों को बनाना ही कमाल नही बल्कि तामीर के बाद इसको आबाद करना भी जरूरी है। यह सच है कि बनाने का सवाब मिलेगा लेकिन मस्जिद छोड़ने का अजाब कहीं इस से बढ़ न जाए। उन्होंने कहा कि कितने अफसोस की बात है कि वही मस्जिदें जहाँ अल्लाह व रसूल की बड़ाई का एहसास होता था, जहाँ इंसाफ के नारे बुलन्द होते थे। आज वीरान हो रही हैं। जब से हमने मस्जिदों से रिश्ता खत्म किया, उसी दिन से इख्तिलाफ का शिकार हो गए। हमारी ताकत खत्म हो गई, हमारा दिल मुर्दा हो गया। जलसे का आरम्भ दारूल उलूम फरंगी महल के अध्यापक क़ारी कमरुद्दीन की तिलावत कलाम पाक से हुआ। जलसा मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली की दुआ पर समाप्त हुआ।
