Assembly Election 2021: पांच राज्यों की विधानसभा चुनाव अंतिम चरण में हैं। ऐसे में बीजेपी की कमान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस की कमान अध्यक्ष राहुल गांधी ने संभाल ली है। माना जा रहा है कि मध्यप्रदेश और तेलंगाना में कांटे की टक्कर है। ऐसे में आखिरी पलों में प्रचार से पूरा पासा पलट सकता है। लोकनीति-सीएसडीएस के अध्ययन भी साबित करते हैं कि मतदाताओं का बड़ा हिस्सा आखिरी समय में ही तय करता है कि उसे किसके पक्ष में वोट देना है।
संभावित विजेता को फायदा
- 2014 में 40 फीसदी मतदाताओं ने संभावित जीतने वाले प्रत्याशी के पक्ष में मत दिया।
- 52% चुनाव के दिन या एक दो दिन पहले के माहौल के आधार पर संभावित विजेता चुनते।
- 46% प्रचार के दौरान ही संभावित विजेता के साथ जाने का फैसला करते हैं।
- 38% शुरुआत में ही तय करने वाले संभावित जीतने वालों के पक्ष में मतदान करते हैं।
कार्यकर्ताओं का जनसंपर्क कितना प्रभावी
गुजरात (2017)
- 40% मतदाताओं ने कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया जिनसे दोनों दलों ने संपर्क किया था।
- 47% उन मतदाताओं ने भी कांग्रेस का साथ दिया जिनसे दोनों ने संपर्क नहीं किया था।
- 44% वे मतदाता भी बीजेपी के साथ जिनसे न तो बीजेपी और न ही कांग्रेस ने संपर्क साधा।
- 51% बीजेपी के पक्ष में मतदान, जिनसे कांग्रेस , बीजेपी दोनों ने संपर्क साधा।
कर्नाटक (2021)
- 31% उन मतदाताओं ने भी कांग्रेस का साथ दिया जिनसे दोनों ने संपर्क नहीं किया था।
- 42% कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया जिनसे दोनों दलों ने संपर्क किया था।
- 34% बीजेपी के पक्ष में मतदान, जिनसे कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने संपर्क किया।
- 39% वे मतदाता भी बीजेपी संग जिनसे न तो बीजेपी न ही कांग्रेस ने संपर्क साधा।
गुजरात-कर्नाटक चुनाव उदाहरण
गुजरात (2017)
- 63% मतदाताओं से दोनों दलों ने संपर्क किया।
- 9% मतदाताओं से केवल कांग्रेस ने संपर्क साधा।
- 8% की दर पर बीजेपी कार्यकर्ता गए।
- 20% के पास दोनों दलों का कोई नुमाइंदा नहीं पहुंचा।
कर्नाटक (2021)
- 46% मतदाताओं से दोनों दलों के नुमाइंदों ने संपर्क किया।
- 37% के पास दोनों दलों का कोई भी व्यक्ति नहीं पहुंचा।
- 8% मतदाताओं की दर पर बीजेपी कार्यकर्ता गए।
- 9% मतदाताओं से केवल कांग्रेस पार्टी ने ही संपर्क किया।