वैष्णव नगरी अयोध्या में चल रहे कार्तिक मेला का समापन पूर्णिमा स्नान से होगा। पूर्णिमा तिथि गुरुवार को अपराह्न 12.16 बजे से शुरू होकर शुक्रवार को पूर्वाह्न 11.28 बजे तक रहेगी लेकिन उदया तिथि की मान्यता के कारण मुख्य स्नान पर्व शुक्रवार को ही माना जाएगा। मेला प्रशासन ने अयोध्या में सुरक्षा व्यवस्था का व्यापक प्रबंध किया है। मालूम हो कि कार्तिक पूर्णिमा के पर्व पर ही देव दीपावली भी मनाई जाती है ।
हनुमत संस्कृत महाविद्यालय के आचार्य पंडित हरफूल शास्त्री बताते हैं कि देव दीपावली मनाए जाने का मुख्य प्रायोजन यह है कि इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार धारण कर वेद मंत्रों की रक्षा की थी। वह बताते हैं कि पौराणिक कथा के अनुसार एक समय बकासुर राक्षस ने अपने पराक्रम से त्रैलोक पर अधिकार कर लिया था लेकिन वह देवताओं को नुकसान नहीं पहुंचा पाया। कहा जाता है कि जब उसे पता चला कि वेद मंत्रों के माध्यम से देवतागण शक्ति अर्जित करते हैं तो उसने मंत्रों के हरण का प्रयास किया। राक्षस से बचने के लिए वेदमंत्रों ने जल में अपने को सुरक्षित किया। फिर भी राक्षस जल प्रवेश कर उन्हें खोजने लगा।
तब देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की गुहार लगाई। देवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न भगवान ने मत्स्यावतार धारण किया। अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक डॉ. वाईपी सिंह कहते हैं कि मत्स्यवतार से ही सृष्टि के विकास का आरम्भ भी होता है। इसीलिए हिन्दी के 12 मासों में से कार्तिक मास को विशेष महत्व दिया गया है। इस तिथि पर अयोध्या में पूरे कार्तिक मास पर्यन्त कल्पवास की परम्परा है। उधर कार्तिक पूर्णिमा की ही तिथि पर भगवान शिव ने तारकासुर नामक राक्षस एवं उसके पुत्रों का वध किया था। इस पर्व पर भगवान विष्णु एवं भगवान शिव की विशेष पूजन के साथ दीपदान का विधान है।
इसके अलावा गंगा व सरयू सहित पवित्र नदियों में भी स्नान का विशेष पुण्य प्राप्त होता है। कहा जाता है कि कार्तिक कृष्ण अमावस्या की रात्रि सर्वाधिक घनी होती है। इस अंधकार को दूर करने के लिए प्रकाश के रूप में दीप जलाने की परम्परा रही है। इसीलिए देव दीपावली के अवसर पर श्रद्धालुजन मंदिरों एवं नदी के तट पर तथा पीपल व वटवृक्षों के नीचे भी दीप प्रज्जवलित कर कल्याण की कामना करते हैं।