आम चुनावों से पहले ग्रेच्युटी और पेंशन जैसे मसलों पर सरकार बड़े फैसले ले सकती है। अगले महीने चार दिसंबर को नवगठित ईपीएफओ के सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टी यानी सीबीटी की बैठक होनी है ऐसे में नौकरीपेशा लोगों के हितों से जुड़े कई मुद्दे एजेडा में शामिल करने की कवायद तेज हो गई है।
इस बैठक में शामिल होने वाले विश्वस्त सूत्र ने ‘हिन्दुस्तान’ को बताया कि सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की बैठक में ग्रेच्युटी की अवधि पांच साल से घटाकर तीन साल करने पर चर्चा होगी। साथ ही निश्चित अवधि वाले कर्मचारी (फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉई) को भी ग्रेच्युटी का फायदा दिए जाने पर फैसला किया जा सकता है। हालांकि ऐसे कर्मचारी को नौकरी की अवधि के अनुपात में ही ग्रेच्युटी मिलने की संभावना है। सरकार से तमाम मजदूर संगठन लबे समय से इस बात की मांग कर रहे हैं कि ग्रेच्युटी की अवधि कम की जाए। उनका तर्क ये है कि आज के प्रतिस्पर्धा भरे दौर में लोग एक जगह टिक कर नौकरी नहीं कर पाते हैं। साथ ही तेजी से बदलते स्किल सेट और बढ़ते खर्चे के माहौल में कंपनियां भी छंटनी करती रहती हैं। ऐसे में 5 साल से पहले नौकरी जाने की आशंका बनी रहती है।
न्यूनतम पेंशन भी हो सकती है दोगुनी
पिछली बैठक में जिन मुद्दों पर फैसला नहीं हो सका था, वो अहम मसले भी बैठक में शामिल किए जाएंगे। न्यूनतम पेंशन 1000 रुपये बढ़ाकर 2000 रुपये करने पर भी इस बैठक में फैसला किया जा सकता है। वित्त मंत्रालय न्यूनतम पेंशन के प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दे चुका है। श्रम मंत्रालय पेंशन और ग्रेच्युटी से जुड़े प्रस्तावों पर सभी हितधारकों से विचार विमर्श कर चुका है। जल्दी नौकरी बदलने पर भी नहीं होगा नुकसान
सरकार के पास प्रस्ताव भेजे गए हैं कि प्रॉविडेंड फंड यानी पीएफ की तर्ज पर ही ग्रेच्युटी के लिए भी यूनिवर्सल अकाउंट जैसा अलग खाता खोला जाए। इसके पीछे मकसद ये है कि कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कर्मचारी जब छोटी-छोटी अवधि की नौकरियां बदलते हैं तो नए संस्थान में ग्रेच्युटी को कैरी फॉरवर्ड कर सकें।
वेतन का हिस्सा है ग्रेच्युटी
ग्रेच्युटी दरअसल कर्मचारी के वेतन का ही हिस्सा होता है। यह कंपनी या नियोक्ता की ओर से आपकी सालों की सेवाओं के बदले दिया जाता है। ग्रेच्युटी वह लाभकारी योजना है, जो सेवानिवृत्ति लाभों का हिस्सा है और नौकरी छोड़ने या रिटायर हो जाने पर कर्मचारी को मिलती है।